व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी, शनिवार, 28 जनवरी 2023
विशेष :- बसंत पंचमी के दो दिन बाद आज श्रीजी में नियम से श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाँई फ़तवी धरायी जाती है. फ़तवी आधी बाँहों वाली एक बंडी या जैकेट जैसी पौशाक होती है जो कि शीतकाल में चोली और घेरदार वागा के ऊपर धरायी जाती है.
- फ़तवी सदैव घेरदार वागा से अलग रंग की होती है.
- शीतकाल में फ़तवी के चार श्रृंगार धराये जाते हैं.
- आज की फ़तवी द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आती है जबकि घेरदार वागा श्रीजी में ही सिद्ध होते हैं.
- फ़तवी के संग श्रीजी के भोग हेतु गुड़कल और घी की कटोरी भी पधारती है जो कि प्रभु को मंगलभोग में आरोगायी जाती है और सखड़ी में वितरित होती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाई की फ़तवी धरायी जाती है.
- लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को छोटा कमर तक का फ़ागुन का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हरे मीना के धराये जाते हैं.
- आज फ़तवी धराए जाने से त्रवल, कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं.
- आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
- श्रीमस्तक पर श्वेत गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में सुआ वाले एक वेणुजी एवं कटी पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि हरे मीना के धराये जाते है.
- खेल के साज में पट गुलाबी एवं गोटी मीना की आती हैं.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : सहज प्रीत गोपाले भावे
- राजभोग : अष्टपदी, खेलत बसंत बने बीर
- आरती : कुच गडुवा जोबन मोर
- शयन : ऋतू बसंत वृन्दावन फुले
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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