व्रज – फाल्गुन कृष्ण छठ, रविवार, 12 फरवरी 2023
विशेष :- कल श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है और इसके एक दिन पूर्व, आज श्रीजी प्रभु को नियम के वस्त्र, श्रृंगार धराये जाते हैं. इसे ‘चढ़ीहस्ती के वस्त्र का श्रृंगार’ कहा जाता है. आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि प्रभु की चोली की बाहें चोवा में भीगी होती है. यह इस भाव से होता है कि प्रभु चोवा, गुलाल एवं अबीर से खेलते हुए अपनी बांह भर बैठे हैं. इसके अतिरिक्त आज की एक और विशेषता है कि आज शीतकाल में श्रीजी को नियम से अंतिम बार मोजाजी धराये जाते हैं अर्थात कल मोजाजी नहीं धराये जायेंगे. यद्यपि आने वाले दिनों में यदि अधिक शीत शेष हो तो कल का दिन (श्रीजी का पाटोत्सव) छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक मोजाजी धराये जा सकते हैं. आज राजभोग के खेल में प्रभु की कटि पर गुलाल व अबीर की पोटली बांधी जाती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली (चढ़ी आस्तीन की) चाकदार वागा, पटका एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण स्वर्ण में जड़े मीना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग के का टिपारा का साज धराया जाता है. बीच की चंद्रिका और दोहरा कतरा के साथ बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में लोलकबिंदी कर्णफूल धराये जाते हैं. आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मीना के धराये जाते है.
- खेल के साज में पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु गुलाल की चोली नहीं खोली जाती है.
- श्रीमस्तक पर टिपारा रहे लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. राजभोग में गुलाल अबीर की पोटली बंधे.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : श्री लक्ष्मण कुल गाइए
- राजभोग : अष्टपदी, खेलत पाग सखा संग, खेलत बल मोहना
- आरती : छेल छबीलो ढोटा रस भर्यो
- शयन : सब ब्रज कुल के राय लाल
- पोढवे : खेलत खेलत पोढ़ी श्री राधे
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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