व्रज – फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, शनिवार, 18 फरवरी 2023
विशेष :- आज महाशिवरात्रि है. भगवान भोले शंकर को पुष्टि में श्रीजी के प्रथम वैष्णव माने गए हैं और आप श्रीजी के प्रिय भक्त हैं. आज नियम का मुकुट और गोल-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
गोल-काछनी को मोर-काछनी भी कहा जाता है क्योंकि यह यह देखने में नृत्यरत मयूर जैसी प्रतीत होती है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रभु गोपियों संग रास रचाते आनंद से मयूर की भांति नृत्य कर रहें हों. आज चोवा की चोली धरायी जाती है. श्रृंगार समय कमल के भाव की पिछवाई आती है जो कि श्रृंगार दर्शन उपरांत बड़ी कर श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसपर राजभोग समय खेल होता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है.
- मलमल की पिछवाई पर कलात्मक बाघम्बर मांडा जाता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज अंगूरी (हल्के हरे) रंग का सूथन, गोल-काछनी (मोर-काछनी), रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.
- चोली को छोड़कर सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- राजभोग के खेल में प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. आज प्रभु की दाढ़ी भी रंगी जाती है.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण सोने के फागुन के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सोने की मुकुट की टोपी पर मीनाकारी का स्वर्ण का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में स्वर्ण के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज शिखाजी (चोटी) नहीं धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में अक्काजी की दो माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मीना के धराये जाते है.
- खेल के साज में पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार,आभरण बड़े किये जाते हैं व दोनो काछनी एवं चोली बड़ी की जाती है.
- शयन में प्रभु को चोवा के घेरदार वागा धराये जाते हैं, श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा व श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) हल्के आभरण धराये जाते हैं. मुकुट की टोपी के स्थान पर गोल पाग धरायी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : आज माई खेलत मोहन होरी
- राजभोग : ष्टपदी, मेरो मन मोह्यो सांवरे, माधो चांचर खेल ही, माला बोले पर : बाघम्बर ओढ़े सांवरो
- आरती : खेलत हो हो होरी ब्रज तरुणी, गोप कुंवर लिए संग
- शयन : चली कुंवर राधे हो हो होरी खेलन
- पोढवे : चले हो भावते रस एन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- कीर्तनों में माला बोले तब ‘बाघंबर ओढें सांवरो हो यामें जोगी कोहु नर कोन’ कीर्तन गाया जाता है वहीँ राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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