व्रज – फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, सोमवार, 27 फरवरी 2023
विशेष :- आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव है. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी मंदिर में श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में फाग खेलने को पधारते हैं.
व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां राजभोग व उत्सव भोग अरोग कर फाग खेलने पधारते हैं.
लाड़ले लाल बगीचे में पधारते हैं अतः श्रीजी को भी आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. श्रीजी में आज से गोविंदस्वामी के गारी के पद गाये जाते हैं. आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने वाले होलकाष्टक के दिनों में कोई लौकिक शुभ कार्य नहीं किये जाते. व्रज में इस अष्टमी, नवमी व दशमी से होली तक नंदगांव व बरसाना में विश्वप्रसिद्द लट्ठमार होली खेली जाती है. इसे होरंगा भी कहा जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक व्रज में जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं. आज राजभोग के खेल में प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज हरे मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर से भारी खेल किया जाता है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण फागुन के मीना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मीना के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मीना के धराये जाते है.
- खेल के साज में पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- दोनों काछनी भी बड़ी कर ली जाती है. मुकुट की टोपी भी बड़ी कर ली जाती है. इनकी जगह चौवा का घेरदार वागा, गोल पाग व तनी धराई जाती है. छेडान के श्रृंगार आवें. लूम तुर्रा सुनहरी धराये जाते है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : श्री लक्ष्मण कुल गाइए
- राजभोग : अष्टपदी, एरी सखी निकसे मोहन मुखमांडे, अब मुख मांडो री गह पाए, छांडो छांडो हमारी बाट लंगर
- आरती : हों किही मिस पनघट जाऊंरी
- शयन : होरी के ख्याल विच यह क्या कित्ता
- पोढवे : चले हो भावते रस एन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के पाग एवं कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है. आज श्रीजी की दाढ़ी रंगी जाती है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर फेंट से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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