व्रज – फाल्गुन शुक्ल दसमी, बुधवार, 01 मार्च 2023
विशेष :- डोलोत्सव के आपके (तिलकायत श्री) के श्रृंगार आरम्भ. आज से प्रतिदिन झारीजी सभी समय यमुनाजल से भरी जाएगी. प्रतिदिन दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाएगी और डोलोत्सव की नौबत की बड़ी बधाई बैठेगी.
- आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं – – दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं. इन श्रृंगार के अधिकृत श्रृंगारी स्वयं पूज्य श्री तिलकायतजी होते हैं.
– विगत कुछ दिनों से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो गयी है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं. इस श्रृंखला में सर्वप्रथम – आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डु अरोगाये जाते हैं.
– आज से राजभोग के खेल में टिपकियाँ नहीं की जाती और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.
– प्रभु की चोली पर खेल नहीं होता. कीर्तनों में दशमी तक अष्टपदी गायी जाती है और अब डोल के भाव के कीर्तन आरंभ होंगे.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि रजत के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं. आज राजभोग के खेल में प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है.
- वस्त्र
- आज श्रीजी को श्वेत चौखाना वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं.
- श्वेत रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है.
- ठाडे वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.
- सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
- प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण फागुन के लाल मीना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर पट्टीदार सिरपैंच, लाल गोटी, लूम की सुनहरी किलंगी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. आज चार मालाजी धराई जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मीना के धराये जाते है.
- खेल के साज में पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.
- आरसी श्रृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में बटदार आती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : आज तो छबीलो लाल प्रात ही खेलंक
- राजभोग : अष्टपदी, तुम आवो री तुम आवो, बोले सब हो हो होरी खेले श्री राधा
- आरती : आयो फागुन मास बोले सब
- शयन : अरी चल नवल किशोरी
- पोढवे : चले हो भावते रस एन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के पाग एवं कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है. आज श्रीजी की दाढ़ी रंगी जाती है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर फेंट से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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