व्रज – चैत्र शुक्ल तृतीया, शुक्रवार, 24 मार्च 2023
विशेष :- प्रथम (चुंदड़ी) गणगौर. आज से राजस्थान का प्रमुख पर्व गणगौर उत्सव आरम्भ होता है. सामान्यतया राजस्थान में चार (चूंदड़ी, हरी, गुलाबी एवं काजली) गणगौर होती है. विश्व के सभी हिस्सों में बसे राजस्थानी विवाहित स्त्रियाँ गणगौर का पूजन करती हैं.
- जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, नाथद्वारा, कांकरोली आदि में तो गणगौर के अवसर पर भव्य सवारियां निकाली जाती है.
- श्रीनाथजी मंदिर स्थित श्री महा प्रभुजी की बैठक में ईशरजी व गणगौर की सुसज्जित प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है.
- श्रीजी में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है यद्यपि गणगौर के चौथे दिन श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे पुत्र श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः श्रीजी में चौथी गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी गयी है.
- आज से प्रभु को चूंदड़ी व लहरिया के वस्त्र भी धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. पहली गणगौर स्वामिनीजी के भाव की है अतः आज श्रीजी को लाल चूंदड़ी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र धराये जाते हैं.
- आज श्रीजी को विशेष रूप से चूंदड़ी के भाव से ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चिरोंजी (चारोली) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. चिरोंजी (चारोली) के लड्डू श्रीजी प्रभु को वर्ष में केवल पांच बार अरोगाये जाते हैं.
- पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि जडाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- ससभी वस्त्र रुपहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सूवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे रंग) रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम-तुर्री रूपहरी, डांख का नागफणी (जमाव) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ हीरा की धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल व गोटी मीना की चूंदड़ी भांत की आती है.
- आरसी नित्य की चांदी वाली उत्सव वत दिखाई जाती है.
- संध्या कालिन सेवा :
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
- शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : एक दिन आपने खिरक को जात ही मिले
- राजभोग : कुंवर बैठे प्यारी के संग
- भोग : कौन गौर ते पूजी राधे
- आरती : आई हे हमारे कोऊ संग पूजन चलो कदम्ब
- शयन : तोसी त्रिया नहीं भुवन भटुरी
- मान : छांड दे मननी श्याम संग
- पोढवे : रंग रवनी रवन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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