व्रज – वैशाख कृष्ण नवमी, शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023
विशेष :- महाप्रभुजी के उत्सव के आगम के श्रृंगार, मेष (सतुवा) संक्रांति
- आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का आगम का श्रृंगार धराया जाता है. अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.
- यद्यपि श्री महाप्रभुजी का प्राकट्योत्सव परसों अर्थात एकादशी को है, कल नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव का दिन है और कल प्रभु को नियम का मुकुट व लाल काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः इस उत्सव का लाल-पीले घेरदार वागा का आगम का श्रृंगार आज नियम से धराया जाता है.
- विशेष-आज मेष संक्रांति भी है जिसे पुष्टिमार्ग में सतुवा संक्रांति भी कहा जाता है.
- भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और इसी कारण सभी उत्सव और त्यौहार भारतीय तिथियों के आधार पर मनाये जाते हैं परन्तु यह पर्व सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है.
- प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है. इसके अनुसार सूर्यदेव आज मेष राशी में प्रवेश करते हैं. प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है. यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है.
- सामान्यतः केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु पुष्टिमार्ग में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है.
- मकर-संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जायेगी एवं मेष-संक्रांति शुक्रवार (वैशाख कृष्ण नवमी) दिन में 2.59 पर आरम्भ होने से 14 अप्रेल को मनायी जायेगी.
- श्रीजी में आज से रथयात्रा के दिन तक मगद (बेसन) के लड्डू नहीं अरोगाये जाते और इसके स्थान पर सतुवा के (चना दाल और जौ से निर्मित) लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- सतुवा उष्णकाल में विशेष लाभकारी सामग्री है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर उष्णकाल के प्रमुख खाद्य के रूप में इसका वर्णन है. छाछ के साथ इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी है. श्रीजी को यह सामग्री आज से रथयात्रा तक अरोगायी जाती है.
- अनसखड़ी में सतुवा लड्डू के रूप में व सखड़ी में सतुवा थोड़ा आंशिक तरल रूप में अरोगाया जाता है.
- सामान्यतया पुण्यकाल के आधार पर मेष संक्रांति मनायी जाती है. इस वर्ष मेष संक्रान्ति शुक्रवार दिन में 2.59 पर आरम्भ होने से पुण्यकाल आज मध्यान्ह से सूर्यास्त तक माना जायेगा. इस लिए मध्यान्ह 2.59 से दो घंटे तक अति मुख्य पुण्यकाल है अतः पुण्यकाल आज ही माना जायेगा.
- श्रीजी मंदिर में उत्थापन या भोग के दर्शन में उत्सव भोग रखे जायेंगे.
- अष्ट प्रहर की सेवा करने वाले समस्त वैष्णव भी इसी प्रकार अपने सेव्य ठाकुरजी को सतुवा का भोग रखें एवं तत्पश्चात दान आदि कर सकते हैं.
- अन्य वैष्णव आज शाम को शयन समय या कल सुबह सतुवा श्री ठाकुरजी को अरोगा सकते हैं.
- उत्सव भोग में श्रीजी को सतुवा के गोद के (सामान्य से बड़े) नग, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से सिद्ध होकर आये सतुवा की सामग्री, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं बीज-चालनी का नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.
- कल से प्रतिदिन राजभोग की सखड़ी में प्रभु को सीरा के रूप में सिद्ध घोला हुआ सतुवा अरोगाया जायेगा.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल की, सुनहरी लप्पा के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि जडाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- आज प्रभु को लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं.
- उर्ध्व भुजा की ओर कटि-पटका धराया जाता है.
- सभी वस्त्र रुपहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण पन्ना के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में पन्ना के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
- कमल माला धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- पट लाल, गोटी छोटी सोने की धरायी जाती हैं.
- आरसी श्रृंगार में सोना की और राजभोग में बटदार आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : सोहेलरा नन्दमहर घर
- राजभोग : एक तुक – ब्रज भयो महर के पूत, जायो सुत निको, चिर जियो लाल
- आरती : श्रीमद वल्लभ रूप सुरंगे
- शयन : चलो मेरे लाडिले हो
- मान : छांड दे माननी श्याम संग रुठवो
- पोढवे : पोढ़ीये लाल लाडली संग
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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