व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी, शनिवार, 03 जून 2023
विशेष :- आज ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भर कर अधिवासन किया जायेगा.
ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भरने तथा अधिवासन सेवाक्रम :
- तिलकायत श्री राकेशजी महाराज और श्री विशालबावा आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतर की बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.
- स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय इस जल का अधिवासन किया जायेगा.
- पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.
- अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.
- अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है. “श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”
कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा. सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- साज सेवा में आज श्वेत जाली पर बृज भक्तों की जल भरवे के भाव की भरत काम से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- चांदी के पडघा के ऊपर माटी के कुंजे में शीतल सुगन्धित जल भरा जाता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण की सेवा में आज प्रभु को छोटा कमर तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के मिलवा धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत पंख के कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है. आज हांस-त्रवल नहीं धराये जाते.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- ऐसी ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, सोने-चांदी (गंगा-यमुना) के वेणुजी एवं कटि पर दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट और गोटी उष्णकाल की पधरायी जाती है.
- आरसी उत्सववत की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : गोकुल की पनिहारी पनिया भरन
- श्रृंगार : जमुना जल घट भरन चली
- राजभोग : आवत ही जमुना भर
- आरती : अरे कौन टेव तेरी रे कन्हैया
- शयन : जल को गई री सुघट नेह
- मान : हरी बोलत चल गोकुल नारी
- पोढवे : रंग महल गोविन्द
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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