व्रज – श्रावण कृष्ण नवमी, मंगलवार, 11 जुलाई 2023
आज की विशेषता :- लहरिया के वस्त्र आरम्भ, आज श्रीजी को इस ऋतु के पहले लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं.
- पंचरंगी लहरिया की पिछवाई, पंचरंगी लहरिया के वस्त्र (पाग एवं पिछोड़ा), श्रीमस्तक पर हीरा की तीन कलंगी, मोर वाला सिरपैंच के ऊपर जमाव (नागफणी) के कतरे का श्रृंगार वर्षभर में केवल आज के दिन ही धराया जाता है.
- आज की सेवा चन्द्रावलीजी की ओर से होती है.
- आज की विशेषता यह है कि श्रीजी को धराये जाने वाले आज के वस्त्र द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से सिद्ध हो कर आते हैं.
- वस्त्रों के साथ श्रीजी और श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु जलेबी के घेरा की छाब भी वहीँ से आती है.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज आज पंचरंगी लहरिया की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज रुपहली ज़री से सुसज्जित पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के हीरा के धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी व वैजयंती माला धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर पंचरंगी छज्जेदार पाग के ऊपर मोर वाला सिरपैंच, हीरा की तीन किलंगी, जमाव (नागफणी) का कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर दो तुर्री, लूम रुपहली ज़री की एवं दायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, भाभीजी वाले वेणुजी एवं कटि पर दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराये जाते हैं.
- ल के साज में आज पट लाल और गोटी हरे लहरिया की पधरायी जाती है.
- आरसी श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की और राजभोग में आरसी सोने की डांडी वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : राधे रूप की घटा हो
- राजभोग : गहर गहर बाजे बदरा
- हिंडोरा : आलिरी झुलत नन्दकुमार, मचक मचक झूले लचक लचक,
गोर श्याम धोरण को लहरिया, ललित कदम्ब तेरे हो - शयन : झूलो झूलो हो मन भावन
- मान : कौन करे पटतर तेरी गुन
- पोढवे : चांपत चरण मोहन लाल
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी फूल पत्तियों के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं. श्री नवनीत प्रियाजी भी फूल पत्तियों के हिंडोलने में झूलते हैं.
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जय श्री कृष्ण
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