व्रज – श्रावण शुक्ल नवमी, शुक्रवार, 25 अगस्त 2023
आज की विशेषता :- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज कृत सप्तस्वरूपोत्सव दिवस है.
- तत्कालीन सरकार के सामने कई वर्षो की लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री ने विजय प्राप्त की, इसी विजयपर्व के उपलक्ष्य में आज के दिन आपश्री द्वारा विक्रम संवत २०२३ अर्थात अप्रेल 1966
में अद्वितीय सप्तस्वरूपोत्सव आयोजित किया गया था. - इस उत्सव में श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारिकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचंद्रमाजी, श्री नटवरलालजी, श्री मदनमोहनजी, श्री मुकुंदरायजी आदि स्वरूपों एवं उनके घर के पूज्य श्री आचार्यचरण पधारे थे.
-कई दिनों के प्रसंग में सात स्वरुप के भाव से सात बड़े मनोरथ हुए थे. छाक का मनोरथ नाथूवास गौशाला में, हिंडोलना का मनोरथ लालबाग़ में, नन्द महोत्सव, पलना, हिंडोलना, हटड़ी, पवित्रा का मनोरथ, एवं आज के दिन छप्पनभोग महोत्सव आदि भव्य एवं अभूतपूर्व मनोरथ इस दौरान आयोजित हुए. - श्रीजी में सप्तस्वरूप उत्सवके दर्शन लगातार 16 घंटे खुले रहे. हजारो वैष्णवो ने दर्शन किये.
नाथद्वारा के बुजुर्ग आज भी इस भव्य आयोजन का गुणगान करते नहीं थकते. इस प्रसंग पर अनेक पद रचे गये एवं कई विद्वानों ने इस अद्भुत सप्तस्वरूपोत्सव का विभिन्न साहित्यों में सुन्दर वर्णन किया है. ऐसा कहा जाता है कि नाथद्वारा नगर की अर्थव्यवस्था का अभ्युदय इस उत्सव के उपरांत ही आरम्भ हुआ था. - सही में उस समय जो अद्भुत सुख की वर्षा हुई थी उसके लिए तो इतना ही कहा जा सकता है ‘यह अवसर जे हते ते महाभाग्यवान’.
श्रीजी में आज का सेवा क्रम :
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
- मंगला, राजभोग, संध्या व शयन चारों समय आरती थाली में की जाती है.
- गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मूँग की दाल की मोहनथाल एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख किशमिश का रायता अरोगाया जाता है.
- आज धराये जाने वाले वस्त्र और श्रृंगार वर्ष में केवल आज के दिन ही धराये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज
- श्रीजी में आज श्याम रंग की गौस्वामी बालकों तथा गायों के सुन्दर चित्रांकन और रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्रीजी के दोनों ओर सभी सप्तस्वरूप विराजित हैं और पास में उनके आचार्यचरण सेवा में उपस्थित हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन है
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद वस्त्रों की बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल की सूथन, गोल-काछनी जिसे मोर काछनी भी कहते है तथा रास-पटका धराया जाता है.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची आदि सभी आभरण हीरे की प्रधानता वाले मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के धराये जाते हैं..
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की जडाऊ टिपारे की टोपी के ऊपर लाल रंग के सुनहरी किनारी वाले गौकर्ण, स्वर्ण का रत्नजड़ित घेरा एवं बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं. दो पाटन वाले हार धराये जाते हैं.
- सफेद एवं पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराये जाते हैं.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : गावत रसिक राय ब्रज नृपत
- राजभोग : पावस नट नट्यो अखारो
- विहरत सातों रूप धरे
- हिंडोरा : थई थई निर्त करत
- झुलत है व्रजनाथ हिंडोरे
- झुलत गिरिवरधारी
- नटवर सुरंग हिंडोरे
- शयन : झूले री झुलेरी झूले
- मान : कौन करे पटतर तेरी गुन
- पोढवे : चांपत चरण मोहन लाल
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी चन्दन के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
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जय श्री कृष्ण
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