व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी, बुधवार, 13 सितम्बर 2023
आज की विशेषता :- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव है.
- आपका जन्म विक्रम संवत 1703 में गोकुल में हुआ था.
- आप टिपारा वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी विट्ठलेशरायजी के सबसे छोटे पुत्र एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरजी महाराज (जिन्होंने श्रीजी को व्रज से मेवाड़ में पधराये) के काकाजी थे.
- आपके 68 वचनामृत बहुत प्रसिद्ध हैं.
- आपने महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के ग्रंथ सुबोधिनीजी’ पर “व्याख्यात्मक निबन्ध” लिखा इसीलिए आप ‘श्री वल्लभजी लेखवाले’ के नाम से जानें गए ।
- आपने व्रज से मेवाड़ पधारते समय श्रीजी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न हो कर श्रीजी ने उनको आज्ञा करके स्वयं के श्रृंगार धरवाये.
- मेवाड़ पधारने के बाद आपने श्रीजी को आज का पीत पिछोड़ा एवं लाल कुल्हे का श्रृंगार धराया.
- तब से यह श्रृंगार प्रतिवर्ष आज के दिन होता है.
क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।। - श्री काका-वल्लभजी ने यह श्रृंगार श्री गोविन्दस्वामी के उपरोक्त पद के आधार पर किया था.
- श्री काका वल्लभजी का श्री वनमाली लालजी मंदिर श्रीजी मंदिर के निकट स्थित है.
- आज के श्रृंगार की यह विशेषता है कि वर्षभर में केवल आज ही के दिन कुल्हे और वस्त्र अलग-अलग रंग के होते हैं.
श्रीजी दर्शन:
- साज :
- साज सेवा के तहत श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी, पड़घा, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज रुपहरी किनारी से सुसज्जित पीले मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फिरोजा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, रुपहली घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर मीना की चोटीजी भी धरायी जाती है.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फ़िरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में आज पट पीला और गोटी राग रंग की पधरायी जाती है.
- आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : बाल दिसा गोपाल की
- राजभोग : मणिमय आँगन रंग क्रीडत
- आरती : खेलत लाल अपने रस मगना
- शयन : खेलत लाल वृन्दावन
- पोढवे : गृह आवत गोपीजन
- भोग सेवा दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण. आप सभी को पुनः खूब-खूब बधाई।
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