व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी, रविवार, 05 नवम्बर 2023
आज की विशेषता :- आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है.
- आगम (प्रतिनिधि) का श्रृंगार – बड़े उत्सवों के पहले उनके श्रृंगार के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें हल्के चंपाई आधारवस्त्र पर सुरमा-सितारा के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) से सुसज्जित पिछवाई, सुनहरी ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है.
- लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की चतुर्दशी (रूप-चौदस) को भी धराये जायेंगे.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज हल्के चंपाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोशी के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) की काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुनहरी (फुलकसाई) ज़री का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- पटका रुपहली ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का अर्थात चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा – हीरे की प्रधानता के, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलकसाई ज़री के चीरा अर्थात ज़री की पाग के ऊपर हीरा-पन्ना का सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- लूम व झोरा हीरा के आते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरे के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- हांस, त्रवल आदि सर्व श्रृंगार, कस्तूरी व कली की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व सोने के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट उत्सव का व गोटी जडाऊ चौपड़ की आती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर शयन समय छोटे छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर चीरा पर नवरत्न की किलंगी और मोती की लूम धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : बोल लिए सब ग्वाल कहत
- राजभोग : हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो
- आरती : आज कहाँ संभ्रम तिहारे
- शयन : बाजत नन्द आवास बधाई
- मान : लालन मनायो न माने
- पोढवे : वे देखो बरत झरोखन दीपक
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
………………………