व्रज – पौष कृष्ण दसमी, शनिवार, 06 जनवरी 2024
आज की विशेषता :- आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है.
- आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं.
- श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है. – परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. अभी आपश्री विराजित हैं तो वही श्रृंगारी होंगे.
- दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाती है.
- आज राजभोग की सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं.
- प्रतिदिन श्रीजी को राजभोग के अनोसर में तथा शयन के पश्चात अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ की सामग्री अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है.
- यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है.
- लाल मखमल के गादी, खंड आदि व जड़ाव के तकिया धरे जाते हैं (गादी एवं तकिया पर सफेद खोल नहीं चढ़ायी जाती).
- चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र जिसमे बिना किनारी का सूथन, चोली, अडतू किये चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- मिलवा-हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं.
- दो हालरा व बघनखा भी धराये जाते हैं.
- हीरा की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि मिलवा उत्सववत धराये जाते है.
- खेल के साज में पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती हैं.
- आरसी चार झाड की एवं सोना की डाँडी की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.
- मंगला – मूल पुरुष
- राजभोग – दीजे हो ग्वाल नन्द बधाई
- आरती – श्री लक्ष्मण वर ब्रह्मधाम
- शयन – यह धन धर्म हीते पायो
- मान – रंग बधावनो गोकुल
- पोढवे – गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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