व्रज – पौष कृष्ण एकादशी, रविवार, 07 जनवरी 2024
आज की विशेषता :- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज का उत्सव है.
- आपका जन्म विक्रम संवत 1769 में गौस्वामी श्री विट्ठलेशजी के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ. आपके बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी के यहाँ कोई पुत्र ना होने के कारण उनके पश्चात आप तिलकायत पद पर आसीन हुए. वर्तमान की भांति तब भी एक पीढ़ी में दो तिलकायत हुए.
- पुष्टिमार्ग में आप बाल-भाव भावित तिलकायत हुए हैं.
- एक बार बाल्यकाल में आप श्रीजी के शैया मंदिर में रह गये तब श्रीजी ने आपको अपने हाथों से महाप्रसाद खिलाया था.
- आपने प्रभु सुखार्थ कई मनोरथ किये. आपके पुत्र श्री गिरधारीजी ने श्रीजी को घसियार से नाथद्वारा पधराकर नवीन नाथद्वारा का निर्माण किया.
उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की (देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं. - आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.
- गद्दल, रजाई सफ़ेद खीनखाब के आते हैं.
- निजमंदिर के सभी साज (गादी, तकिया आदि) पर आज पुनः सफेदी चढ़ जाती है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में खरमंडा अरोगाये जाते हैं.
- प्रतिदिन श्रीजी को राजभोग के अनोसर में तथा शयन के पश्चात अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ की सामग्री अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज श्वेत साटन के वस्त्र के ऊपर फूल-पत्तियों के लाल, हरे, पीले रंग के कलाबत्तू के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है जो कि फिरोजी रंग के वस्त्र के ऊपर पुष्प-लता के भरतकाम से सुसज्जित होती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को रुपहली ज़री का बड़े बूटा का किनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं धराये जाते हैं.
- पटका लाल रंग का धराया जाता हैं.
- मोजाजी हरे केरीभात के धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा में श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना के धराये जाते हैं.
- ठाडी लड़ मोती की धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में माणक का दुलड़ा हार (जो आपश्री ने श्रीजी को भेंट किया था), कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में जड़ाव स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व सोने के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट उत्सव का व गोटी श्याम मीना की आती है.
- आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा: श्रीजी की राग सेवा में आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं.
- मंगला : बल बल चरित्र श्री गोकुलराय
- राजभोग : जे श्री वल्लभ राजकुमार
- आरती : तेरी लाल लागो मोहे बालय
- शयन : मांगे री मोपे चंद खिलौना
- मान – रंग बधावनो गोकुल
- पोढवे – गृह आवत गोपीजन
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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