व्रज – वैशाख कृष्ण दशमी, शुक्रवार, 03 अप्रैल 2024
आज की विशेषता :- नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत पांच स्वरूपोत्सव दिवस
- विक्रमाब्द 1966 में आज के दिन नाथद्वारा में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने श्रीजी के साथ श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारिकाधीशजी एवं श्री मथुराधीशजी को पधराकर छप्पनभोग अरोगाया था अतः आज के दिन को पांच स्वरूपोत्सव कहा जाता है.
- सेवाक्रम : उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज सभी समय में झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है. दो समय आरती थाली में की जाती है.
- पांच स्वरूपोत्सव के दिन विराजित सभी स्वरूपों ने मोती का मुकुट, लाल रंग की काछनी के वस्त्र एवं वनमाला का श्रृंगार धराया था अतः श्रीजी को आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में रस-बूंदी (आमरस व मेवा मिश्रित बूंदी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं.
- कल वैशाख कृष्ण एकादशी को श्रीमद वल्लभाचार्यजी का उत्सव और वरूथिनी एकादशी का व्रत हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी में गायों, पांच-स्वरूपोत्सव में विराजित प्रभु स्वरूपों एवं गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की सुन्दर प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- जडाऊ स्वर्ण के एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराये जाते हैं.
- चोली श्याम सुतरु धरायी जाती है.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत भातवार मलमल के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा, मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण का झीने मोतियों का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर उत्सव की हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व नील-कमल की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ हीरा मोती की धराई जाती है.
- पट लाल, गोटी नाचते मोर की व
- आरसी चार झाड़ की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : यह सुख देखोरी तुम आई
- राजभोग : ऐसी बंसी बाजी, विहरत सातों रूप धरे
- आरती : जन्म लियो शुभ लग्न विचार
- शयन : श्री वल्लभ मधुराकृत मेरे
- पोढवे : दम्पत पोढ़े रस बतियाँ करत
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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