व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, मंगलवार, 11 जून 2024
आज की विशेषता :- डोल-तिबारी में कमर तक जल में नाव मनोरथ
- आज के दिन अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी विक्रम संवत 2005 को तत्कालीन गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री ने उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपालसिंहजी व महारानीजी की विनती पर श्रीजी में नाव का मनोरथ किया था. जिसमे श्रीजी मंदिर की डोलतिबारी में जल भरकर नाव में प्रभु श्री नवनीत प्रियाजी एवं श्री मदनमोहनजी को विराजित कर सुन्दर मनोरथ किया गया था. तभी से यह मनोरथ भावनानुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को होता है.
- एक विशेषता और भी है आज के मनोरथ के साथ जुडी हुई.
- पुष्टिमार्ग के द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी में आज श्री गोविन्दरायजी (द्वितीय) का प्राकट्योत्सव भी है. संयोग देखिये कि आज ही नाव मनोरथ भी किया श्री गोविन्द लालजी ने.
- आज प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध होकर पधारते हैं.
- साथ में श्रीजी कि भोग सेवा के तहत बूंदी के लड्डुओं की छाब भी वहां से आती है.
- श्रीनाथजी में नाव मनोरथ पर सेवाक्रम
- राजभोग दर्शन के पश्चात श्रीजी मंदिर कि डोल-तिबारी (जहाँ से हम श्रीजी के दर्शन करते है) में कमर तक जल भरा जाता है. भाव श्री यमुनाजी का रहता है.
- जल को सुगन्धित करने के भाव से उसमे विविध प्रकार के इत्र घोले जाते हैं. मोगरे, गुलाब, कमल पुष्प एवं कमल पत्ते भी पधराये जाते है.
- लकड़ी के खिलौने जिसमे मगरमच्छ, कछुए आदि तैराये जाते हैं. रुई से बनी बतखें भी तैरायी जाती हैं.
- इसके साथ ही नाव का अधिवासन करके उसे सुन्दर बिछावट के साथ पुष्पों, खिलोनो, ग्वाल बालों, गोपियों सखियों से सजाया जाता है. फिर श्रीजी के गोद के ठाकुरजी श्री मदन मोहनजी को विराजमान किया जाता है.
- उत्थापन एवं भोग दर्शन नहीं खोले जाते व सायं संध्या-आरती में लगभग 5 बजे नाव मनोरथ के दर्शन खुलते हैं.
- सुन्दर नौका में विराजित हो श्रीजी के विग्रह स्वरुप श्री मदनमोहनजी वैष्णवों पर आनंद रस की वर्षा करते हैं.
- दर्शनों के पश्चात ठाकुरजी को भीतर पधराकर नाव को किनारे लेकर हटा दिया जाता है और जल छोड़ दिया जाता है जिसमें सभी वैष्णव स्नान का आनंद लेते हैं और श्रीजी के दर्शन करते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी की साज सेवा में उदयपुर के गणगौर-घाट, राजमहल, नौका-विहार, घूमर नृत्य करती गोपियों, श्री ठाकुर जी, श्री बलदेव जी एवं श्री नंद-यशोदा जी के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- तीन पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी और तीसरे पडघा पर श्वेत माटी के कुंजा में शीतल जल भरकर पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को दोहरी किनारी वाली गुलाबी रंग की मलमल की विशेष परदनी धरायी जाती है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा मोती के धराये जाते हैं. जिसमे हांस, त्रवल, कटीपेच धराये जाते है. झूमक के हार धराये जाते है.
- श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, मोती की घुमावदार चमकनी गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ हरे एवं कमल के पुष्पों की विविध पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है वहीँ श्वेत पुष्पों एवं कमल की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी नित्यवत चांदी वाली वाली दिखाई जाती है.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की पधरायी जाती है.
- विशेष में दिन में दो समय राजभोग एवं संध्या आरती की आरती थाली में की जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा: देखे री हरि नंगमनंगा विशेष रूप से गाया जाता है.
- मंगला: नमो देवी यमुने नमो
- राजभोग: करत जल केल पिय प्यारी
- भोग : बैठे घनश्याम सुन्दर, वृन्दावन जमुना जल, चन्दन पहर नाव हरी
- आरती: कृपा रस नैन कमल दल
- शयन: बैठे ब्रज राज कुंवर प्यारी संग
- मान: उठ चल बेग राधिका प्यारी
- पोढवे: नवल किशोर नवल नागरी
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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