व्रज – आषाढ़ कृष्ण अमावस्या, शुक्रवार, 05 जुलाई 2024
आज की विशेषता :- आज नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरिधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव है.
- आपने अपने जीवनकाल में नाथद्वारा में श्रीजी के सुख हेतु एवं जनसुखार्थ गिरधर सागर आदि कई स्थानों का निर्माण करवाया. आपके समय में नाथद्वारा के ऊपर मराठाओं आदि के आक्रमण के कारण आपने घसियार में श्रीजी का नूतन मंदिर सिद्ध करवा कर विक्रम संवत १८५८ में श्रीजी, श्री नवनीतप्रियाजी एवं श्री विट्ठलनाथजी को पधराये.
- आप वहां अत्यधिक उल्लास व उत्साह से श्रीजी को सेवा, मनोरथ आदि करते थे. आपने घसियार में ही लीलाप्रवेश किया था. आपके पुत्र श्री दामोदरजी ने श्रीजी को घसियार से विक्रम संवत १८६४ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को पुनः वर्तमान खर्चभंडार के स्थान पर पाट पर पधराये.
श्रीजी में सेवाक्रम –
- उत्सव होने से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाती है.
- आज के उत्सव नायक का जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण होने से प्रभु को भी सादा वस्त्र, अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल का आड़बन्द एवं गोल-पाग के श्रृंगार ही धराये जाते हैं.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी के मीठा में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज श्रीजी में अधरंग (गहरे पतंगी) रंग के मलमल की बिना किनारी के हांशिया की पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- तीन पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी और तीसरे पडघा पर श्वेत माटी के कुंजा में शीतल जल भरकर पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज छोटा (कमर तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- आभरण हीरा के व उत्सव के, श्रीमस्तक पर अधरंग रंग की गोल-पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. - श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर कुल्हे की कंठी धरायी जाती है.
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सूवा वाले वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला – आवत काल की साँझ देखो
- राजभोग – ठीक दुपहरी की तपन में भलेई
- बधाई – श्री वल्लभ नन्दन रूप अनूप
- संध्या आरती – ललित ब्रज देश
- शयन- अरी हों तो या मग निकसी
- मान – आज सुहावनी रात
- पोढवे- प्रेम के पर्यंक पोढे
- भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
- संध्या-आरती के ठोड़ के स्थान पर वारा में बूंदी के गोद के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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