व्रज – आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, शुक्रवार, 19 जुलाई 2024
आज की विशेषता :- ऋतू के आखिरी आड़बंद के श्रृंगार
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज श्वेत मलमल के वस्त्र की बिना किनारी वाली पिछवाई सजाई जाती है.
- लेकिन तिलकायत श्री की आज्ञा से इस बार राजभोग में अंगूरी मलमल की लाल हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य पडघाजी पर श्वेत माटी का कुंजा शीतल जल भरकर पधराया जाता है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को श्वेत रंग का मलमल का आड़बंद धराया जाता है.
- यह आड़बंद इस ऋतू में आज आखिरी बार धराया जाता है.
- यह आड़बंद भी बिना किनारी का होता है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की ऊपर छोर व नीचे लटकन वाली गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ हरे एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- वहीं दो सुन्दर माला हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी नित्यवत चांदी वाली वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : ऐसी ऋतू सदा सर्वदा
- राजभोग : आयोरी पावस दल साज गाज
- आरती : मुरली तू जो गोपाले भावे
- शयन : लाल माई भीजत आए
- मान : यह ऋतू रुसवे की नाही
- पोढवे : रावटी सुख सेज
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
भक्तवत्सल प्रभु श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को मान दिया है एवं अपनी कृपा से व्रज के सभी जीवमात्रों, पेड़-पौधों को कृतार्थ किया है.
श्री गोवर्धन पर्वत की चारों दिशाओं में 132 वन हैं जिनमें 96 सुगन्धित पुष्प एवं जीवोपयोगी वनौषधियां हैं जिनको कृतार्थ करने के भाव से कल श्रीजी को संध्या-आरती दर्शन में वनमाला धरायी जाएगी. यह वर्ष में केवल एक बार आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को धरायी जाती है.
कल प्रभु को ऊष्णकाल में अंतिम बार परधनी धरायी जाएगी.
जय श्री कृष्ण
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