व्रज – आषाढ़ शुक्ल एकादशी, बुधवार, 17 जुलाई 2024
आज की विशेषता :- ऋतू का पहला मुकुट का श्रृंगार, कली का छेला श्रृंगार
- सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं.आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है. कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं.
- सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें जगाया जाता है.
- उस दिन को देव प्रबोधिनी एकादशी (देवोत्थापन) कहा जाता है. इस बीच के अंतराल को चातुर्मास कहा जाता है. आज से चार माह अर्थात देव प्रबोधिनी एकादशी तक विवाहादि कुछ शुभ कार्य वर्जित होते हैं.
- आज श्रीजी को लगभग तीन माह पश्चात इस ऋतु का प्रथम मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की चारों एकादशियों में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में लिचोई (मिश्री के बूरे और इलायची पाउडर से सज्जित पतली पूड़ी) अरोगायी जाती है.
इसके अतिरिक्त आज विशेष रूप से द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से अनसखड़ी में श्रीजी के अरोगने हेतु मांडा (मीठी रोटी) और आमरस की सामग्री पधारती हैं जो कि प्रभु को संध्या-आरती में अरोगायी जाती है. - श्रीजी को ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी अर्थात आज तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इस मौसम का यह आखिरी कली का श्रृंगार धराया जाता है. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.
- कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. आज कली के मुकुट काछनी का सुन्दर श्रृंगार धराया जाता है.
- उत्थापन पश्चात कली के ये श्रृंगार धराने के साथ श्री को विशेष भोग भी अरोगाये जाते है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज श्रीजी में आज श्री यमुना जी में जलविहार करते हुए तथा तथा खस के बंगले बिराजते हुए श्री ठाकुर जी, श्री स्वामिनी जी एवं गोपीयों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
- लेकिन तिलकायत श्री की आज्ञा से इस बार राजभोग में अंगूरी मलमल की लाल हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य पडघाजी पर श्वेत माटी का कुंजा शीतल जल भरकर पधराया जाता है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को अंगूरी रंग की लाल हांशिया वाली काछनी धराई जाती है. अंगूरी का ही सुथन भी धराया जाता है.
- और ऐसा ही अंगूरी रंग का लाल हांशिया वाला पीताम्बर धराया जाता है.
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के धराये जाते है.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं. कली आदि सभी मालाजी धराई जाती है.
- श्रीमस्तक पर मोती की टोपी पर मोती का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. मोती की चोटीजी धराई जाती है.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : वृन्दावन क्यों न भए हम मोर
- राजभोग : ऐरी यह नागर नन्दलाल कुंवर
- आरती : फूल महल में फूल बैठे रसिक
- शयन : कुञ्ज महल के आँगन मध्य
- मान : यह रुसवे की नाही
- पोढवे : रंग महल गोविन्द पोढ़े
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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