व्रज – श्रावण शुक्ल तृतीया, बुधवार, 07 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- आज ठकुरानी तीज है. व्रज और राजस्थान का यह लोकोत्सव है.
- युवा कन्याएं सज-संवर कर वन विहार करती हैं. झूला झूलती हैं, आनंद-प्रमोद करती हैं और व्रत करती हैं. नाथद्वारा में भी महिलाऐं लाल चूंदड़ी के वस्त्र पहन कर प्रभु के दर्शन करने जाती हैं. राजस्थान के राजपुताना राज-घरानों में इस दिन का विशेष महत्व है. इसे राजस्थान में छोटी तीज अथवा हरियाली तीज भी कहा जाता है. राजघरानों में अनेक कथाये है.
- हमारी संस्कृति में ठाकुर गाँव के बड़ो अथवा मुखिया को कहा जाता है. ब्रज लीला में नन्द बावा, वृषभान आदि थे तो हमारी पुष्टी प्रणालीका में प्रभु ही ठाकुर है. लौकिक में ठाकुर की पत्नी ठकुरानी कही जाती है.
- व्रज साहित्य में ठकुरायन श्री राधा रानी, ठाकुर नन्द कुमार है.
- श्रीजी में इसका भाव इस प्रकार है श्री महाप्रभुजी को विक्रम संवत 1549 की फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन झारखंड में आज्ञा के उपरांत आप श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन गोकुल के गोविन्द घाट पधारे जहाँ श्री यमुनाजी ने आपको दर्शन दिए. श्री महाप्रभुजी ने यमुनाष्टक कीं रचना कर श्री यमुनाजी की स्तुति की. इसीलिए उस घाट का नाम ठकुरानी घाट हुआ.
- अतः पुष्टी सेवा प्रणालिका में श्री यमुनाजी और श्री स्वामिनीजी ठकुरायन है.
- पुष्टी साहित्य में इसके अनेक उल्लेख है. श्री हरिरायजी के उत्सव पद में “श्री ठकुरानी तीज हिंडोरा बरसानो मन भावे. सूरदासजी की वाणी में “सावन तीज हिंडोरे झूले”, नंददासजी की वाणी में “बनठन कहाँ को चले ऐसी को मनभाई, नंददास प्रभु अब ना बनेगी निकास जाय ठकुराई” .
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में कांच की पच्चीकारी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी कांच की पच्चीकारी के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
- आज की सेवा चन्द्रावलीजी और शोभाजी की ओर की होती है.
श्रीजी आज का सेवाक्रम –
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- मंगला दर्शन के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समय अर्थात मंगला, राजभोग, संध्या व शयन की आरती थाली में की जाती है.
- गेंद, चौगान, दीवला आदि सोने के आते हैं.
- आज से श्रीजी को चूंदड़ी के वस्त्र धराने आरम्भ होते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलाकायत श्री दामोदरलालजी महाराज द्वारा नाथद्वारा के प्रसिद्द दिवंगत चित्रकार कन्हैयालालजी से बनवायी एक अद्भुत सुन्दर पिछवाई आज श्रीजी में सजाई जाती है जिसमें चारों ओर बादल छाये हुए हैं, बिजली चमक रही है और वर्षा हो रही है. पेड़ों पर मयूर मधुर ध्वनी में कूक रहे हैं. श्री स्वामिनीजी बादलों की इस गर्जना में प्रभु की ओर पधार रहीं हैं.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज नियम का लाल रंग का चौफूली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के हीरा, मोती, माणिक पन्ना एवं जड़ाऊ स्वर्ण धराये जाते हैं.
- कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- श्रीकंठ में नीचे सात पदक, ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलड़ा धराया जाता है.
- श्रीमस्तक पर लाल चौफूली चूंदड़ी की चोफनी पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सादी मोरपंख की चन्द्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उत्सव का और गोटी जडाऊ पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सव की आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की और राजभोग में आरसी सोने की डांडी वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : भींजत कब देखो इन नैना
- राजभोग : सारी मेरी भीजत है जू नई
- हिंडोरा : एरी हिंडोरना झूलन आई
राधे देखिये वन शोभा
माई री झूले कुंवरी
आलीरी सावन तीज सुहाई
सावन तीज हिंडोरा झूले - शयन : सुरंग हिंडोरना झुलत राधा संग सहचरी
- पोढवे : रंग महल पोढ़े गोविन्द
- श्रीजी की भोग सेवा के दर्शन :
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को चारोली (चिरोंजी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मीठी सेव,केसरी पेठा अरोगाये जाते है.
- रात्रि (शयन) के अनोसर में प्रिया-प्रीतम के भाव से डोल तिबारी में विशिष्ट सज्जा होती है – जिसमें डोलतिबारी के ध्रुवबारी वाले छोर पर बंगला व अन्य भावभावित सज्जा की जाती है.
- दूधघर में सिद्ध बादाम की बर्फी आदि कुछ सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.
- अगले दिन शंखनाद के उपरांत यह सज्जा बड़ीकर (हटा) ली जाती है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- सायंकाल में श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में कलकत्ती कांच के हिंडोलना के दर्शन होंगे.
जय श्री कृष्ण
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