व्रज – श्रावण शुक्ल पंचमी, शुक्रवार, 09 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- आज का दिवस भूमंडल पर प्रभु श्रीगोवर्धननाथजी के प्रथम प्रागट्य का अति महत्वपूर्ण दिवस है. जिसे नाग दमन स्वरुप के रूप में जाना जाता है. आज नाग पंचमी भी है.
- हमारे ग्रंथों के अनुसार महर्षि गर्गाचार्य जी ने हजारों वर्ष पूर्व रचित गर्गसंहिता में गिरिराज खंड के बारे में लिखा था कि कलयुग में श्री कृष्ण यहाँ प्रकट होंगे.
येन रूपेण कृष्णेन घृतो गोवर्धनो गिरि: l
तद्रूपं विद्यते तत्र, राजन् श्रृंगारमंडले ll
अब्जाश्र्वतु: सहस्त्राणि तथा पंचशतानि च l
गतास्तत्र कलेरादौ क्षेत्रे श्रृंगारमंडले ll
गिरिराज गुहामध्यात् सर्वेषां पश्यंता नृप l
स्वतः सिद्धं च तद्रूपं हरे: प्रादुर्भविष्यति ll
श्रीनाथं देवदमनं च वदिष्यन्ति सज्जना: ll
अर्थात भगवान कृष्ण ने जिस स्वरुप में (बायाँ हाथ उठा) गिरिराज पर्वत उठाया था वह स्वरुप वर्तमान में व्रज में गुप्त रूप में विराजित है. कलियुग के 4500 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात श्रीहरि का स्वयंसिद्ध स्वरूप व्रज में श्री गिरिराज जी की कन्दरा में स्वतः प्रकट होगा एवं इस स्वरुप को सज्जन व्यक्ति देव-दमन कह कर पुकारेंगे. - महर्षि गर्गाचार्य जी के कथनानुसार ही विक्रम संवत 1466 को श्री गोवर्धननाथ का नागदमन स्वरुप प्राकट्य श्री गिरिराज पर्वत (गोवर्धन) पर हुआ. जिसमे सर्व प्रथम ब्रजवासियों को वाम भुजा के दर्शन हुए. जिसे स्वयं प्रभु ने श्रीवल्लभ को अपने तीन स्वरूपों नाग दमन, देव दमन एवं इन्द्रदमन के बारे प्रकट किया था.
- यह वही स्वरूप था जिस स्वरूप से प्रभु श्री कृष्ण ने इन्द्र का मान-मर्दन करने के लिए व्रजवासियों की पूजा स्वीकार की और अन्नकूट की सामग्री आरोगी थी.
श्री गोवर्धननाथजी के सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य एक साथ नहीं हुआ था पहले वाम भुजा का प्राकट्य हुआ, फिर मुखारविन्द का और कुछ समय पश्चात सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य हुआ. - सर्वप्रथम विक्रम संवत 1466 की श्रावण शुक्ल पंचमी जिसे नागपंचमी भी कहते है के दिन जब एक व्रजवासी अपनी गाय को खोजने श्री गिरिराज पर्वत पर गया जिसका दूध स्वयं झर जाता था तब उसे श्री गोवर्द्धनाथजी की ऊपर उठी हुई वाम भुजा के दर्शन हुए. उसने अन्य ब्रजवासियों को बुलाकर ऊर्ध्व वाम भुजा के दर्शन करवाये. तब व्रजवासियों ने उनकी वाम भुजा का पूजन किया. इसके बाद लगभग 87 वर्षों तक ब्रजवासी इस ऊर्ध्व भुजा को दूध से स्नान करवाते, पूजा करते, भोग धरते थे।
- इसके पश्चात विक्रम संवत 1535 की चैत्र कृष्ण एकादशी को प्रभु का मुखारविंद प्रकट हुआ. ठीक इसी समय श्री वल्लभाचार्य जी का भी चम्पारण में प्राकट्य हुआ.
- श्री महाप्रभुजी ने विक्रम संवत 1549 में प्रभु को श्री गिरिराजजी की कन्दरा से बाहर पधराया एवं प्रभु की आज्ञानुसार सेवाक्रम प्रारंभ किया. तब तक व्रजवासी ही प्रभु को दूध, दही एवं मक्खन आदि का भोग रखते थे.
श्रीजी आज का सेवाक्रम –
- आज का उत्सव श्री गिरिराजजी के भाव से मनाया जाता है. आज की सेवा हंसाजी की ओर से की जाती है.
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की पाटिया के लड्डू एवं पाटिया (गेहूं की सेवई) की खीर आरोगायी जाती है.
सेव की खीर आज के अतिरिक्त केवल कुंडवारा मनोरथ में अथवा अन्नकूट उत्सव पर आरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज श्री गिरिराजजी की एक ओर आन्योर ग्राम एवं दूसरी ओर जतीपुरा ग्राम, दोनों ग्रामों से व्रजवासी श्रीजी की उर्ध्व भुजा के दर्शन करने जा रहे हैं ऐसे सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल लगी हुई होती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. एक अन्य चांदी के पडघाजी पर माटी के कुंजा में शीतल सुगंधित जल भरा होता है.
- दो गुलाबदानियाँ गुलाब-जल भर कर तकिया के पास रखी जाती हैं.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है.
- यह पिछोड़ा सुनहरी पठानी किनारी सजा होता है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- प्रभु को आज मध्य का घुटने तक का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती व सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर कोयली रंग की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तुर्री डाँख का जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले व श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीकंठ में कली की माला आती हैं.
- बध्धी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
- खेल के साज में आज पट कोयली और गोटी चांदी की पधरायी जाती है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ मिलवा धराई जाती है.
- अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : बोले माई गोवर्धन पर मुरवा
- राजभोग : देखो अद्भुत अवगत की गत
- हिंडोरे : झुलत है राधा सुन्दर
- झुलत लाल गोवर्धनधारी
- गृह गृह ते आई व्रज सुन्दर
- झुलत रंग हिंडोरे सुन्दर
- शयन : माई री झुलत रंग हिंडोरे
- श्रीजी की भोग सेवा के दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी डोल तिवारी में श्याम मोती के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं.
- श्री नवनीत प्रियाजी भी श्याम मोती के हिंडोलने में विराजित होकर झूलते है.
जय श्री कृष्ण
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