व्रज – भाद्रपद कृष्ण दसमी, बुधवार, 28 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं. प्रथम बधाई का श्रृंगार श्री यमुनाजी के भाव से, दूसरा जन्माष्टमी के दिन श्री राधिकाजी के भाव से, तीसरा नन्द महोत्सव का श्री चन्द्रावलीजी के भाव से और चौथा आज का श्री ललिताजी के भाव से होता है.
- आज श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं.
- इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.
- कल नन्दोत्सव से अमावस्या तक प्रभु की बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं कीर्तनों में बाल-लीला के ही पद गाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, तीन पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफेद मखमल वाली आती है.
- आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में पट एवं गोटी हीरा के आते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज केसरी रंग के जामदानी के, रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है.
- सूथन रेशमी सुनहरी छापा का होता है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.
- श्रृंगार
- आज वनमाला का चरणारविन्द तक का उत्सव का दो जोड़ का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण उत्सव के हीरा और माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जड़ाव का शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर उत्सव की माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर हीरे का चौखटा धराया जाता है.
- श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में स्वर्ण की बड़ी डाँडी की आती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : आनंद आज नंदजू के द्वार
- राजभोग : बाटत ठाड़े नन्द बधाई
- आरती : भाग्य सबन ते न्यारो
- शयन : आनन्द बधावनो
- पोढवे : गृह आवत गोपीजन
- भोग सेवा दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्ण
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