व्रज – भाद्रपद कृष्ण द्वादशी, शुक्रवार, 30 अगस्त 2024
आज की विशेषता :- आज वत्स द्वादशी है.
- प्रभु श्रीकृष्ण ढाई वर्ष के होने पर आज के दिन ही यशोदाजी ने भी गाय और बछड़े का पूजन कर शगुन के रूप में उनको वन में बछड़े चराने की स्वीकृति प्रदान की थी. इस कारण से आज का दिवस वत्स द्वादशी कहलाता है.
- यद्यपि श्री कृष्ण ने गौ-चारण गोपाष्टमी के दिवस से प्रारंभ किया था और उसी दिन से गोपाल कहाए थे.
- इसी भावना से राजस्थान एवं व्रज सहित उत्तर-भारत के अधिकतर भागों में आज माताएँ बछड़े सहित गाय का पूजन करती हैं और अपने पुत्र की दीर्घायु हेतु व्रत रखती हैं.
- आज चाकू से काटी सब्जियां भी नहीं खायी जाती, गेहूं के आटे का उपयोग नहीं किया जाता है अतः मक्की अथवा बाजरे की रोटी खायी जाती है. – मूंग-चांवल, अनारदाना की कढ़ी, चना-चांवल मुख्य रूप से खाए जाते हैं.
- प्रातः सभी महिलाऐं अपने पुत्रों के साथ सुन्दर लाल-पीले वस्त्र धारण कर अपने-अपने मोहल्ले में (जहाँ किसी गाय ने हाल ही में बछड़े को जन्म दिया हो) उस घर या गौशाला जाकर गाय और बछड़े की पूजा करती है और अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना करती है.
- गाय के गोबर में चांदी के सिक्के से पूजा की जाती है.
- गाय और बछड़े को अंकुरित मूंग-चने, बाजरे के लड्डू और नारियल भोग के रूप में खिलाये जाते हैं और अपने परिवार जनों को नारियल का प्रसाद दिया जाता है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज नन्दभवन की तिबारी में बछड़े सहित गाय का तिलक कर पूजन करती श्री यशोदा मैया, रोहिणी मैया तथा दूसरी ओर गायों के साथ ग्वाल-बालों के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया व स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकीके ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा के तहत श्रीजी को आज लाल रंग की चौफूली चुन्दडी के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन एवं गोल काछनी (मोर काछनी) धरायी जाती है.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाती है.
- श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी तिलक व फूंदा वाली पर जाली की तीन तुर्री धराई जाती है. और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं एवं स्वरुप की बायीं ओर मीना की चोटीजी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व एक सोना के) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ उत्सववत धराई जाती है.
- खेल के साज में आज पट लाल और मोर की पधरायी जाती है.
- आरसी आज कांच के कलात्मक काम वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : माधो जू तनक सो बदन
- राजभोग : मेरे गोपाल लडायवो
- आरती : मेरे छगन मगन खेलो आंगन
- शयन : मांगे री मोपे चंद खिलौना
- भोग सेवा दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्ण
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