व्रज– भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, शनिवार, 07 सितम्बर 2024
आज की विशेषता :- आज श्रीनाथजी में डंडा चौथ (गणेश चतुर्थी) उत्सव, सूथन-पटका का श्रृंगार
- पुष्टिमार्ग में श्री वल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी की कानि से नित्य- नैमित्तिक शुभ कर्म में गणपति पूजन का विधान है. प्रसंग ऐसा है कि एक बार आचार्य चरण काशी अपने ससुराल पधारे वहाँ पँच देवोपासना के स्वरुप थे. उनमे से श्रीगोकुलनाथजी के स्वरुप पधरा लिए और अन्य को गंगा में विसर्जित करने का मन बनाया. तभी सभी ने आप से अनुरोध किया की यदि आप ही हमारी पूजा नहीं करेगे तो हमें कोन मान्यता देगा? तब आचार्य चरण ने आश्वासन दिया की हमारे यहां शुभ प्रस्ताव- विवाह, जनेऊ आदि में आपका पूजन सम्मान यथावत रहेगा. इसलिए पुष्टिमार्ग के मंदिरो में गणपति रिद्धि सिद्धि युक्त भंडार गृह में विराजमान किये जाते है जो जमणी सूंढ़ वाले लाल रंग युक्त होते हे. उनका गणपति अथर्वशीर्ष आदि से, भगवत प्रसादी माला, वस्त्र, गुड़ धानी के लड्डू, खोवा, फल, बीड़ा कंकु, अक्षत आदि से पूजन – सम्मान होता है. मार्कंडेय पूजन, दीपावली के पूजन, यज्ञोपवीत ,शुभ विवाह आदि कार्यक्रमों में भी गणपति स्थापना-पूजन प्रसादी वस्तुओ से होता है. वैसे भी महादेवजी पार्वतीजी व उनका परिवार परम भगवद्भक्त है।
- नाथद्वारा में कई वर्षों पहले यह परम्परा थी कि गणेश चतुर्थी के दिन नाथद्वारा के सभी स्कूलों और आश्रमों के बालक विविध वस्त्र श्रृंगार धारण कर के अपने गुरुजनों के साथ मंदिर के गोवर्धन पूजा के चौक में आते और डंके (डांडिया) से खेलते थे.
उन्हें गुड़धानी के लड्डू पूज्य श्री तिलकायत की ओर से दिए जाते थे. इसी भाव से आज डंके के खेल के चित्रांकन की पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.
इसके अतिरिक्त अपने निज आवास मोतीमहल की छत पर खड़े हो कर तिलकायत गुड़धानी के लड्डू मंदिर पिछवाड़े में बड़ा-बाज़ार में खड़े नगरवासियों को देते थे जिन्हें सभी बड़े उत्साह से लेकर उल्हासित होते थे. - आज ठाकुरजी अपनी भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं.
- ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. आज (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं परन्तु धराया अवश्य जाता है.
- ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है.
- आज भोग में कोई विशेष सामग्री नहीं अरोगायी जाती है. केवल यदि कोई मनोरथी हो तो ठाकुरजी को सखड़ी अथवा अनसखड़ी में बाटी-चूरमा की सामग्री अरोगायी जा सकती है.
- सायंकाल संध्या-आरती समय मंदिर के श्रीकृष्ण-भंडार, मुख्य निष्पादन अधिकारी कार्यालय और खर्च-भंडार में लौकिक रूप में भगवान गणेश के चित्रों का पूजन किया जाता है.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में श्रीजी में आज व्रजवासियों के समूह की डंकाखेल के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- चांदी की त्रस्टीजी भी धरी जाती है.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल चोफुली चूंदड़ी के वस्त्र पर धोरे-वाला सूथन और पटका धराया जाता है.
- दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सुवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल चूंदड़ी की छज्जे वाली पाग के ऊपर मोरशिखा, जमाव का कतरा लूम तथा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में दो जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में तिमनिया धराया जाता हैं.
- गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल एवं गोटी हरे मीना आती हैं.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : श्री वृषभान के हो आँगन भीर, जब ते राधा प्रकट भई
- श्रृंगार : भई वृषभान के सुता
- राजभोग : में देखी सुता वृषभान की, राधाजू सोभा प्रकट भई
- उत्थापन : गोकुल ते गाजत बाजत
- आरती : वृषभान के हम भाट
- शयन : रावल गाँव ते दौर नार इक आई, मादल की बधाई
- भोग सेवा दर्शन :
- श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
जय श्री कृष्ण
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