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श्रीनाथजी में आज श्रीललिताजी का उत्सव, पिछोड़ा-चन्द्रिका का श्रृंगार

Divyashankhnaad by Divyashankhnaad
09/09/2024
in नाथद्वारा, श्रीनाथजी दर्शन
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श्रीनाथजी में आज श्रीललिताजी का उत्सव, पिछोड़ा-चन्द्रिका का श्रृंगार
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व्रज – भादवा शुक्ल छठ, सोमवार, 09 सितम्बर 2024

आज की विशेषता :- बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव

  • आज राधिकाजी की प्रिय सखी ललिताजी का प्राकट्योत्सव है. इसी प्रकार आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशराय जी (१७४४) का भी प्राकट्योत्सव है.
  • आपका जन्म श्रीजी के नाथद्वारा पधारने के पश्चात तत्कालीन तिलकायत श्री दामोदरजी (दाऊजी) महाराज के यहाँ हुआ था. आप अनुपम सुन्दर, प्रसन्नवदन एवं सर्वांग सौष्टव युक्त थे.
  • आज के दिन जन्म होने से आप सदैव ललिताजी के भाव से बिराजते थे. आपने सदैव स्वामिनी भाव से श्रीजी को विविध भोग, राग एवं श्रृंगार धरकर लाड़ लड़ाये.
  • एक वैष्णव ने आपसे प्रश्न किया कि आप सदैव स्त्री वेश में क्यों रहते हैं तब आपने ललिताजी के स्वरुप में उनको दर्शन देकर संशय दूर किया.
  • सामान्यतया कोई वल्लभकुल बालक का प्राकट्योत्सव हो तो श्रीजी में महाप्रभुजी की बधाई के पद गाये जाते हैं पर आज के उत्सव में आपकी अथवा श्री महाप्रभुजी की बधाई नहीं गाई जाती परन्तु ललिताजी की बधाई के पद गाये जाते हैं.
  • ललिताजी के भाव से ही आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रीनाथजी में आज का सेवाक्रम :

  • उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
  • श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
  • गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
  • राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
  • भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

श्रीजी दर्शन

  • साज
    • आज श्रीजी में पंचरंगी लहरिया की रुपहरी जरी की किनारी वाली पिछवाई धरायी जाती है.
    • अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
    • गादी, तकिया व स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
    • दो स्वर्ण के पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
    • सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
  • वस्त्र
    • वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया की मलमल का सुनहरी किनारी से सजा पिछोड़ा धराया जाता है.
    • ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के धराये जाते हैं.
  • श्रृंगार
    • आज श्रीजी को छेडान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
    • कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
    • श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, एक मोर पंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
    • श्रीकर्ण चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
    • नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है.
    • त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
    • श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत, पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
    • श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
    • प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
    • खेल के साज में आज लाल और गोटी श्याम मीना की पधरायी जाती है.
    • आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में स्वर्ण की डाँडी वाली दिखाई जाती है.
  • श्रीजी की राग सेवा:
    • मंगला : सब ब्रज को श्रृंगार प्रगट्यो, बरसाने वर सरोवर प्रगट्यो
    • श्रृंगार : श्री वृषभान रायजू के आँगन
    • राजभोग : गोकुल ते गाजत बाजत, बरसाने वृषभान गोप के
    • उत्थापन : नन्दराय को ढाढी
    • आरती : भादों की उजियारी आठों, शोभा प्रगट भई त्रिभुवन की
    • शयन : श्री वृषभान के प्रगटी राधा
    • पोढवे : गृह आवत गोपीजन
    • भोग सेवा दर्शन :
    • श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
    • मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
    • श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.

जय श्री कृष्ण
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