व्रज : भाद्रपद शुक्ल एकादशी, शनिवार 14 सितम्बर 2024
आज की विशेषता :- दान (परिवर्तिनी) एकादशी, दान आरंभ, दश-दिंगत विजयी नित्यलीलास्थ श्री पुरुषोत्तमजी का उत्सव
- दान मांगत ही में आनि कछु कीयो।
- धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥
- छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
- चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥
- श्रृंगार समय दान के पद गाये जाते हैं.
- आज परिवर्तिनी एकादशी है जिसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है. पद्म पुराण के अनुसार चतुर्मास के दौरान आने वाली इस एकादशी का महत्व देवशयनी और देवप्रबोधिनी एकादशी के समान है.
- इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान करवट लेते हैं इसलिए देवी-देवता भी इनकी पूजा करते हैं.
- आज के दिन दान देने और प्रभु को दान की सामग्री अरोगाने से देह की दशा में परिवर्तन होता है.
- अपने पांडित्य से दसों-दिशाओं में पुष्टिमार्ग की यश पताका फहराने वाले दश-दिंगत विजयी, नवलक्ष ग्रन्थकर्ता नित्यलीलास्थ श्री पुरुषोत्तमजी (१७१४) का भी आज उत्सव है.
- आप के सेव्य स्वरुप सूरत (गुजरात) में विराजित प्रभु श्री बालकृष्णलालजी हैं.
- पुष्टिमार्ग में आज की एकादशी को दान-एकादशी कहा जाता है.
- नंदकुमार रसराज प्रभु ने व्रज की गोपियों से इन बीस दिनों तक दान लिया है. प्रभु ने तीन रीतियों (सात्विक, राजस एवं तामस) से दान लिए हैं.
- दीनतायुक्त स्नेहपूर्वक, विनम्रता से दान मांगे वह सात्विक दान, वाद-विवाद व श्रीमंततापूर्वक दान ले वह राजस एवं हठपूर्वक, झगड़ा कर के अनिच्छा होते भी जोर-जबरदस्ती कर दान ले वह तामस दान है.
- दान के दिनों में गाये जाने वाले कीर्तनों में इन तीनों प्रकार से लिये दान का बहुत सुन्दर वर्णन है.
- प्रभु ने व्रजवितान में, दानघाटी सांकरी-खोर में, गहवर वन में, वृन्दावन में, गोवर्धन के मार्ग पर, कदम्बखंडी में, पनघट के ऊपर, यमुना घाट पर आदि विविध स्थलों पर व्रजभक्तों से दान लिया है और उन्हें अपने प्रेमरस का दान किया है.
- इस प्रकार दान-लीला के विविध भाव हैं.
- दान की सामग्री में दूध श्री स्वामिनीजी के भाव से, दही श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, छाछ श्री यमुनाजी के भाव से, और माखन श्री कुमारिकाजी के भाव से अरोगाया जाता है.
- दान के बीस दिनों में पांच-पांच दिन चारों युथाधिपतियों के माने गए हैं.
- कल तक बाल-लीला के पद गाये जाते थे. अब आज से प्रतिदिन दान के पद गाये जायेंगे.
श्रीजी दर्शन
- साज
- आज प्रातः श्रीजी में दानघाटी में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
- राजभोग में पिछवाई बदल के जन्माष्टमी के दिन धराई जाने वाली लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज लाल रुपहली किनारी से सुसज्जित सूथन धराये जाते हैं. छोटी काछनी लाल रुपहली किनारी की एवं बड़ी काछनी कोयली सुनहरी किनारी की होती है.
- लाल रुपहली ज़री की तुईलैस वाला रास-पटका धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी का धराया जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.
- आज प्रभु को बघनखा धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर माणक के टोपी व मुकुट( गोकुलनाथजी वाले) एवं मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटी नहीं धरायी जाती है.
- पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, वेणु, वेत्र माणक के व एक वेत्र हीरा के धराये जाते हैं.
- पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
- आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : हमारो दान देहो गुजरेटी
- राजभोग : कह धों री मोल या दधि को री
- आरती : कापर ढोटा नैन नचावत
- शयन : भैय्या हों घेरो हों ब्रजनारी
- मान : नवल निकुंज नवल मृगनैनी
- पोढ़वे : तुम पोढो हों सेज बनाऊ
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि
- मंगला, राजभोग, आरती व शयन दर्शन में आरती की जाती है.
- नित्यानुसार भोग रखा जाता है.
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
………………………