व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वादशी, रविवार 15 सितम्बर 2024
आज की विशेषता :- सभी वैष्णवजन को वामन द्वादशी के पावन उत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई
- पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्री कृष्ण, श्री राम, श्री नृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है.
- कुछ वैष्णवों ने पूर्व में पूछा था कि भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने केवल चार अवतारों को ही क्यों मान्यता दी है ?
- इसका उत्तर यह है कि भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.
- इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है.
- जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.
- भाद्रपद कृष्ण पंचमी को केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी, राधाष्टमी और वामन द्वादशी के उत्सवों पर श्रीजी को धराये जाते हैं.
- आज श्रीजी को नियम का केसरी धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. काफी अद्भुत बात है कि आज यह श्रृंगार धराया प्रभु का स्वरुप अन्य दिनों की तुलना में कुछ छोटा प्रतीत होता है अर्थात दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि श्रीजी आज वामन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.
- वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं.
- प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में जयंती के भाव के पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं.
- प्रथम राजभोग दर्शन में लगभग बारह बजे के आसपास अभिजित नक्षत्र में श्रीजी के साथ विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है एवं दर्शन के उपरांत उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किया जाता है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं.
- दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना (आचार) और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन
- साज
- श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है.
- प्रभु के यश विस्तार भाव से ठाड़े वस्त्र सफेद धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- हीरे की प्रधानता वाले आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में हीरे के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.
- रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो एक सवर्ण का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
- पट उत्सव का एवं गोटी दान की आती हैं.
- आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : गोविन्द तिहारो स्वरुप निगम
- राजभोग-1 : प्रकटे श्री वामन अवतार
- राजभोग-2 : बलि के द्वार ठाड़े वामन
- आरती : पद्म धर्यो जन ताप निवारण
- शयन : चरण कमल वंदो जगदीश
- मान : आज सुहावनी रात
- पोढ़वे : राय गिरधरन संग राधिका रानी
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि
- मंगला, राजभोग, आरती व शयन दर्शन में आरती की जाती है.
- नित्यानुसार भोग रखा जाता है.
- दान की सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
जय श्री कृष्ण
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