व्रज – अश्विन शुक्ल एकम, गुरुवार, 03 अक्टूबर 2024
आज की विशेषता :- आश्विन नवरात्रि स्थापना, नवविलास आरम्भ 03 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक और 12 अक्टूबर को दशहरा है. आज प्रथम विलास.
- आज आश्विन नवरात्रि स्थापना का दिन है. सनातन धर्म में वर्ष में चार नवरात्रियाँ होती है जिसमें दो गुप्त और दो गोचर अथवा प्रत्यक्ष (चैत्री और आश्विन) नवरात्रियाँ होती हैं. प्रत्यक्ष नवरात्रियों में सात्विक शक्ति स्वरुप दैवी-पूजन होता है.
- पुष्टिमार्ग में विश्व के प्राचीनतम हिन्दू धर्म की कई रीतियों का समावेश है और विविध त्यौहारों, उत्सवों पर पंचामृत, अधिवासन, जवारा रोपण आदि रीतियाँ आदि पुरातन हिन्दू वेदों से प्रेरित हैं.
- इसी श्रंखला में पुष्टिमार्ग में आज से ललिताजी के सेवा मास का आरंभ होता है जिसमें आज से नव-विलास के उत्सव का आरंभ होता है और इन नौ दिनों में प्रतिदिन नूतन भाव अंकुरित होते हैं, इस भाव से प्रतिदिन नूतन वस्त्र और नूतन सामग्रियां श्री प्रभु को अरोगायी जाती हैं. सभी नौ दिन विविध रंगों के छापा के वस्त्र ठाकुरजी को धराये जाते हैं.
- आज श्रीजी सहित सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दस मिटटी के कूंडों (पात्रों) में गेहूं के जवारे बोये जाते हैं. माटी के इन कूंडों (पात्रों) में गेहूं और जौ बोये जाते हैं. जिसे अंकुर-रोपण कहा जाता है.
सात्विक, राजस, तामस आदि नौ प्रकार के गुणों के भाव से और एक निर्गुण भाव से, ऐसे दस पात्रों में ज्वारा अंकुरित किये जाते हैं. - ये अंकुरित ज्वारा दशहरा के दिन प्रभु के श्रीमस्तक पर कलंगी के रूप में धराये जाते हैं.
- त्रेतायुग में व्रज में इन नौ दिनों गोप कन्याओं ने दैवी पूजन के भाव में प्रभु श्रीकृष्ण को विविध मनोरथ कर प्रसन्न किया था. प्रभु से मिलाप कर प्रभु को सर्वस्व अर्पण कर विविध भोग-सामग्रियां अरोगायी थी. यह भावना नव-विलास कहलाती है.
- श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है. हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.
- आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है. आज से मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं. इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.
आज का सेवाक्रम :
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से मांडा जाता हैं.
- आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.
- आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समा की आरती थाली में की जाती है.
- श्रीजी में आज से हल्की गुलाबी सर्दी का आरंभ माना जाता है अतः मंगला समय पीठिका के ऊपर श्वेत दत्तु (बिना रुई की ओढनी) ओढायी जाती है.
- मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज श्रीजी को नियम के हरी सूथन, लाल छापा के चोली एवं चाकदार खुलेबंध वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.
- श्रीजी को भोग सेवा के तहत गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख का रायता अरोगाया जाता है.
- भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
- सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.
- आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज लाल रंग की छापा की त्रिशूल वाली सफेद ज़री की किनारी से सुसज्जित एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल छापा के रुपहली ज़री की किनारी के चाकदार एवं चोली धरायी जाती है.
- सूथन हरे रंग का धराया जाता हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा, पन्ना, माणक, मोती एवं नीलम के जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- एक दुलड़ा एवं सतलड़ा धराया जाता हैं.
- नीचे सात पदक एवं ऊपर हीरा पन्ना, मानक एवं मोती के हार धराए जाते है
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल छापा के कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा सुशोभित होता है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत, गुलाबी व पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट उत्सव का एवं गोटी सोने की जाली वाली आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : जान्यो जान्यो री सयान
- राजभोग : आज की बानक लाल
- आरती : पूजन चलो हो कदम्ब बन
- शयन : ए मोपे आज की बानक
- मान : आज सुहावनी रात
- पोढवे : राय गिरधरन संग राधिका रानी
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
जय श्री कृष्ण
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