व्रज – अश्विन शुक्ल तृतीया (प्रथम) शनिवार, 05 अक्टूबर 2024
आज की विशेषता :- आज तृतीय विलास का लीला स्थल निकुंज महल है.
- आज तृतीय विलास का लीला स्थल निकुंज महल है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी विशाखाजी हैं और सामग्री बासुंदी है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में प्रभु स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
- आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ‘चाशनीयुक्त कूर के गुंजा’ अरोगाये जाते हैं.
- यह एक समोसे जैसी सामग्री है जिसके भीतर कूर (घी में सेका कसार और कुछ सूखा मेवा) भरा होता है. इसके ऊपर चाशनी चढ़ी होती है.
आज का सेवाक्रम :
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से मांडा जाता हैं.
- आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.
- आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.
- दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.
- चारों समा की आरती थाली में की जाती है.
- श्रीजी में आज से हल्की गुलाबी सर्दी का आरंभ माना जाता है अतः मंगला समय पीठिका के ऊपर श्वेत दत्तु (बिना रुई की ओढनी) ओढायी जाती है.
- मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- आज श्रीजी को नियम के हरी सूथन, लाल छापा के चोली एवं चाकदार खुलेबंध वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.
- श्रीजी को भोग सेवा के तहत गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख का रायता अरोगाया जाता है.
- भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
- सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.
- आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.
श्रीजी दर्शन
- साज
- साज सेवा में आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी के ऊपर सफेद, तकिया के ऊपर श्वेत वस्त्रों की बिछावट की जाती है.
- स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी सफ़ेद मखमल वाली आती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की किनारी वाला सूथन, हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज छेड़ान का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा, लूम, तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट श्याम व गोटी मीना की आती है.
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा:
- मंगला : श्री जमुना जू के तीर री नन्दलाल
- राजभोग : बैठे हरी राधा संग
- आरती : बंसी की भनक कान परन लागी
- शयन : अरी इन बांसुरी हमारो सर्वस
- मान : हरी बोलत चल गोकुल नारी
- पोढवे : पोढ़े हरी राधिका के गेह
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
- -ध्रुवबारी के नीचे रास पंचाध्याई का गायन किया जाता है.
जय श्री कृष्ण
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