व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा, शुक्रवार, 11 जून 2021
पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में पुष्टिमार्गीय सेवा प्रणालिका के अनुसार श्रीनाथजी के आज के राग, भोग व श्रृंगार सहित दर्शन इस प्रकार है.
आज विशेषता : बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और मोती के दोहरा क़तरा के श्रृंगार
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है. लेकिन आज श्रीजी को आज एक विशिष्ट श्रृंगार धराया जाता है, इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परन्तु ज्येष्ठ मास के किसी खाली दिन धराया अवश्य जाता है.
- यह हम जानते है कि अष्टछाप के प्रमुख कवि सूरदासजी नेत्रहीन (दृष्टि से दिव्यांग) थे परन्तु प्रतिदिन मन की दिव्य दृष्टि से प्रभु के दर्शन कर अपने कीर्तनों में प्रभु के श्रृंगार का वर्णन करते थे और इसे प्रभु की कृपा कहते थे.
- एक बार श्री गुसांईजी स्वयं श्रीजीद्वार पधारे अतः सूरदासजी ने भी श्रीजीद्वार जाने का विचार किया. तब श्री गिरधरजी आदि बालकों ने उन्हें दो दिन और रुककर श्री नवनीतप्रियाजी को कीर्तन सुनाने को कहा अतः सूरदासजी गोकुल में ही रुक गये.
- श्री गिरधरजी से तीनों बालकों (श्री गोविन्दरायजी, श्री बालकृष्णजी और श्री गोकुलनाथजी) ने संशयवश कहा कि हम श्री नवनीतप्रियाजी को जो श्रृंगार धराते हैं, सूरदास जी वैसे ही वस्त्र आभूषणों का वर्णन करते हैं. आज कुछ ऐसा अद्भुत अनोखा श्रृंगार करें कि सूरदासजी पहचान ही नहीं पायें. तब श्री गिरधरजी ने कहा –“सूरदासजी भगवदीय है और इनके हृदय में स्वरूपानंद का अनुभव है. तुम जो भी श्रृंगार करोगे वो उसी भाव का वर्णन अपने पदों में करेंगे अतः भगवदीय की परीक्षा नहीं करनी चाहिए.” तब तीनों बालकों ने कहा –“फिर भी हमारा मन है अतः हम अपना संशय दूर करने के लिए कल ठाकुरजी को अद्भुत श्रृंगार धरायेंगे.”
- अगले दिन प्रातः तीनों बालक श्री नवनीतप्रियाजी के मंदिर में पधारे और सेवा में नहाये, श्री ठाकुरजी को जगाकर भोग धरे. मंगलभोग सरे उपरांत ठाकुरजी को नहला कर श्रृंगार धराने लगे. ऊष्णकाल के दिन थे और कुछ अलग भी करना था अतः ठाकुरजी को वस्त्र ही नहीं धराये.
केवल मोती की दो लड़ श्रीमस्तक पर, मोती के बाजूबंद, कटि किंकिणी नुपूर, हार आदि सभी मोती के, तिलक, नकवेसर, कर्णफूल ही धराये. - सूरदासजी जगमोहन में बैठे थे और उनके हृदय में यह अनुभव हुआ तब उन्होंने विचार किया कि आज तो श्री नवनीतप्रियाजी ने अद्भुत श्रृंगार धराया है जो कि कभी नहीं सुना, नहीं देखा.
केवल मोती ही धराये हैं और वस्त्र तो है ही नहीं. मुझे भी इस अद्भुत श्रृंगार के लिए कुछ अद्भुत कीर्तन गाना चाहिए. जब श्रृंगार दर्शन खुले और सूरदासजी को कीर्तन हेतु बुलाया गया तो उन्होंने राग-बिलावल में यह सुन्दर कीर्तन गाया.
देखे री हरि नंगमनंगा l
जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll
अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l
किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll - यह सुनकर श्री गिरधरजी सहित वहां उपस्थित सभी बालक अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले, “सूरदासजी, आज आपने ऐसा कीर्तन क्यों गाया ?”
तब सूरदासजी ने विनम्रता से कहा : “जैसा अद्भुत श्रृंगार आपने किया है वैसा ही अद्भुत कीर्तन मैंने रचित कर गाया है.” सभी बालक सूरदासजी पर बहुत प्रसन्न हुए और कुछ दिन पश्चात श्री गिरधरजी सूरदास जी को लेकर श्रीजीद्वार पधारे और श्री गुसांईजी को उस अद्भुत घटना का सविस्तार विवरण दिया. तब श्री गुसांईजी ने श्री गिरधरजी से कहा :“सूरदासजी पर संशय नहीं करना चाहिए था.
ये तो पुष्टिमार्ग के जहाज हैं अतः इन्हें भगवदलीला का अनुभव आठों पहर होता रहता है और इसीलिए सूरदासजी श्री महाप्रभुजी के अत्यंत कृपापात्र भगवदीय थे.” - इसी प्रसंग की भावना के अनुसार आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है, श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की पाग धरायी जाती है और कोई वस्त्र नहीं धराये जाते यहाँ तक कि आज प्रभु को आड़बंद के भीतर तनिया भी नहीं धराया जाता.
आज के श्रीजी दर्शन :
श्रीजी की आज की साज सेवा के दर्शन : - श्रीजी में आज श्वेत रंग की जाली की पिछवाई सजाई जाती है.
- अन्य साज में गादी, तकिया, चरणचौकी, दो पडघा, त्रस्टी प्रभु के समक्ष पधराये जाते है. इनके अलावा खेल के साज पधराये जाते है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
- दो पडघा में से एक पर बंटाजी व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
- सम्मुख में धरती पर चांदी की त्रस्टी धरे जाते हैं.
- खेल के साज में आज पट उष्णकाल का और गोटी हक़ीक की पधरायी जाती है.
श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्रों के दर्शन : - वस्त्र सेवा में श्रीजी को बसरा के प्राचीन मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है.
श्रीजी को धराये जाने वाले श्रृंगार आभरण के दर्शन : - आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोती का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजामाला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं कटि पर वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आभरण से मिलवा धराई जाती है.
- आरसी नित्यवत चांदी वाली वाली दिखाई जाती है.
श्रीजी की राग सेवा : - मंगला : श्री यमुने सुख कारिणी प्राणपति
- राजभोग : देख्यो री हरि नंगम नंगा
- आरती : सुन री आली दुपहरी की बिरियाँ
- शयन : अरे कौन टेव तेरी रे कन्हैया
- मान : उठ चल बेग राधिका प्यारी
- पोढवे : रावटी सुख सेज पोढ़े
भोग सेवा दर्शन : - श्रीजी को दूधघर, बालभोग, शाकघर व रसोई में सिद्ध की जाने वाली सामग्रियों का नित्य नियमानुसार भोग रखा जाता है.
- मंगला राजभोग आरती एवं शयन दर्शनों में आरती की जाती है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है.
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जय श्री कृष्ण
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