श्रीनाथजी में आज सातवाँ विलास, हरे छापा पर कतरा का श्रृंगार
व्रज – आश्विन शुक्ल सप्तमी, मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021
सप्तम विलास की भावना : विशेष : आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है.
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :
- साज सेवा में आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पडघा पर बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की किनारी वाला सूथन, हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज छेड़ान का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण माणक के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा, लूम, तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट हरा व गोटी चांदी की आती है.
मंगला : जान्यो जान्यो री सयान
राजभोग : तेसोई तरुण तनया तीर
आरती : सुन मुरली की टेर
शयन : नेक सुनाओ मोहन मुरली
मान : आज अजन दियो राधिका नैन
पोढवे : पोढ़ीये लाल लाडिली संग - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।
मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।
बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।
चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।
रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।
अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।
कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।
कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll
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जय श्री कृष्ण।
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