व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी, सोमवार, 11 अक्टूबर 2021
विशेष – आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी मुखराईजी हैं और कुञ्ज सामग्री सिकोरी है.
- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.
- श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
- आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.
- आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है.
- इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.
- आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है.
इस श्रृंगार के विषय में पहले भी कई बार वर्णन किया जा चुका है कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.
आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है.
श्रीजी श्रृंगार दर्शन :
- साज सेवा में आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पानघर की सेवा के तहत बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ धराये जाते है.
- मल्लकाछ के साथ गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है.
- आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं.
- ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो आज प्रभु को मध्य का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाए आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. – आज श्रीजी को बायीं ओर मोती की चोटीजी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
- आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट गुलाबी गोटी बाघ बकरी वाली रखी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : बैरन बांसुरी तोहे बजत न आवे लाज
राजभोग : तरण तनया तीर लाल गावत बने
आरती : कौन देस ते आयो बनचर
शयन : मोहन मुख बाजे मंद मंद
मान : तेरी री बदन कमल
पोढवे : पोढ़ीये पिय कुंवर कन्हाई
छठो विलास कियो श्यामा जु
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।। - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण।
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