व्रज : कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, रविवार, 24 अक्तूबर 2021
विशेष : दीपावली के पूर्व कार्तिक कृष्ण द्वादशी का प्रतिनिधि श्रृंगार
- दशहरा के अगले दिन से दीपावली के उत्सव के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं.
इनमें कार्तिक कृष्ण दशमी से दीपावली तक धराये जाने वाले सभी छह श्रृंगारों के प्रतिनिधि के श्रृंगार आगामी दिनों में धराये जाएंगे. - इनमें कुछ श्रृंगार के दिन नियत व कुछ खाली दिनों में धराये जाते हैं.
- प्रतिनिधि श्रृंगार में वस्त्र, साज और श्रृंगार आदि मुख्य श्रृंगार जैसे ही होते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली द्वादशी को धराये जाने वाले वस्त्र और श्रृंगार धराया जाता है जिसमें पिली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की कशी के काम की चन्द्रिका धरायी जाती है. - लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की वत्स द्वादशी को भी धराये जायेंगे.
- इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें. अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी का है.
- आज की एक और विशेषता देखें तो गत कल से प्रभु श्रीनाथजी में आगामी अन्नकूट की भोग सेवा के तहत आज से घन की सेवा प्रारम्भ हो गयी है. पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा प्राप्त श्रीजी भक्त सेवक प्रातः 4.30 बजे अपने अपने टोल कहत ब्रिज्वासियाँ पद का गायन करते हुए श्रीजी मंदिर की परिक्रमा करते है. उनके साथ श्रीजी मंदिर के पंड्या परेशजी भी होते है. परिक्रमा के पश्चात विधि विधान से घन की सेवा प्रारंभ करवाई जाती है. घन की सेवा का भाव समझें तो प्रभु श्रीनाथजी की अन्नकूट की सामग्री सेवा में सबसे पहले पापड़ की सेवा होती है. पापड़ की सामग्री का मिश्रण लोट तैयार किया जाता है. जो वैष्णव पापड़ के लिए विविध सामग्रियों दालों का चून, मसाले आदि मिश्रित कर के तैयार करते है उनको ज्ञात है कि यह मिश्रण कठोर रहता है. अतः उसे सामग्री ले लायक बनाने के लिए काष्ठ के घन से कूटा जाता है. इस लिए इस सेवा को घन की सेवा कहते है.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में आज कत्थाई आधार पर कला बत्तू के काम की तथा श्याम हाशिया पर सुनहरी सुरमा सितारा के भरतकाम पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराए जाते है.
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज मध्य का अर्थात घुटने तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, हांस, त्रवल, कड़ा, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना तथा सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर पीले रंग के सलीदार चीरा (जिसे ज़री की पाग भी कहते है) के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की काशी के काम की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की दो जोड़ी धराई जाती हैं.
- कली मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के (एक पन्ना का) वेणुजी एवं बेंतजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- पट प्रतिनिधि का एवं गोटी सोना की आती हैं.
विशेष :
संध्या-आरती दर्शन के उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण व श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराकर शयन दर्शन खुलते हैं. - श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : बार बार हरी सिखवन लागे
राजभोग : सुनिए तात हमारो मतो
आरती : बाजत नन्द आवास बधाई
शयन : विनती करत नन्द कर जोरे
मान : पिय को बदन निहारे
पोढवे : वे देखो बरत झरोखन दीपक - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण।
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