व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी, शनिवार 30 अक्टूबर 2021
विशेष : पुष्टिमार्ग में कोई भी उत्सव ऐसे ही नहीं मना लिया जाता वरन पुष्टि के नियम कुछ इस प्रकार बनाये गए हैं कि प्रभु सेवा के हर क्रम में उस उत्सव के आगमन का आभास होता है.
- दीपावली का आभास दशहरा से ही आरम्भ हो जाता है
- आज से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु के लिए झारीजी में यमुनाजल भरा जाता हैं.
- उत्सव का आभास जागृत करने के भाव से प्रभु सम्मुख के गादी, चरणचौकी खंडपाट आदि की खोल पर से सफेदी उतार कर मखमल के खोल चढ़ाये जाते हैं.
- तकिया पर लाल मखमल कि खोल आती है.
- आज से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो जाएगी. प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से आज से सात दिन तक गोवर्धन-पूजन के पद गाये जाते हैं.
- आज से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तक प्रतिदिन श्रीजी को दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार धराये जायेंगे.
- इन्हें ‘आपश्री (तिलकायत) के श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है.
- घर के श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.
- इन्हें आपके श्रृंगार इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन श्रृंगारों के अधिकृत श्रृंगारी पूज्य श्री तिलकायत महाराज होते हैं.
- श्रीजी को आज का श्रृंगार श्री विशाखाजी की भावना से धराया जाता है. श्री विशाखाजी अत्यंत गौर श्रीअंग वाले थे अतः आपके भाव से आज श्वेत कारचोव के वस्त्र, सुनहरी टिपकी वाले एवं दोहरी सुनहरी किनारी वाले धराये जाते हैं.
- आज से आगामी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तक सात दिन श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही सामग्रियां आरोगायी जाती हैं.
- इसी श्रृंखला में आज श्री विशाखाजी के भाव से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. यह सामग्री अन्नकूट पर भी अरोगायी जाएगी.
- कीर्तनों में राजभोग समय गोवर्धन-पूजा के पद गाये जाते हैं.
- भोग-आरती में गौ-क्रीड़ा के पद एवं शयन में रौशनी, दीपदान एवं हटड़ी के पद गाये जाते हैं.
- आज से किर्तनिया राजभोग के दर्शन उपरांत भीतर से कमलचौक तक ‘कीर्तन करते’ हुए निकलते हैं और शयन समय कीर्तन समाज किर्तनिया गली में बैठते हैं.
आज से दीपावली की रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में श्रीजी में आज सफेद रंग की कारचोव के वस्त्र की पिछवाई आती है जिसके ऊपर सुनहरी ज़री की किनारी का हांशिया एवं ज़रदोशी का काम किया गया है.
- तकिया के ऊपर मेघश्याम, गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रस्टी धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज श्वेत ज़री (कारचोव) के सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.
- उर्ध्वभुजा की ओर मलमल का कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल की तरफ़) धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज छोटा कमर तक का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण पन्ना तथा सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सफेद रंग की कारचोव के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- आज विशेष रूप से पन्ना की चार माला धराई जाती हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट श्वेत एवं गोटी स्वर्ण की आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में चाँदी की बटदार दिखाई जाती हैं.
- प्रातः धराये श्रीमस्तक के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
- उत्थापन के पश्चात फूल पत्तों की बाड़ी आती हैं.
- शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में नित्य हांडी में रौशनी की जाती है.
- आज से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि के थाल आरोगाया जाता है.
- इसके अतिरिक्त आज से अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : पूजा विधि गिरिराज की
राजभोग : बडडेन को आगे
आरती : खिरक खिलावत गायन ठाड़े
शयन : आई ब्रज बधु मन
पोढवे : वे देखो बरत झरोखन
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
बडड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll
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जय श्री कृष्ण
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