व्रज : कार्तिक कृष्ण अष्टमी, शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021
- दीपोत्सव के आगम (प्रतिनिधि) का श्रृंगार अन्नकूट का भट्टी पूजन (सखड़ी की सामग्री सिद्ध होना प्रारंभ)
- भट्टी पूजन : आज श्रीजी में अन्नकूट महोत्सव के लिए भट्टी पूजन होगा अर्थात आज से प्रभु की सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ होंगी.
- श्रीजी के मुखियाजी, मुख्य पंड्याजी, अन्नकूट के मुखिया, श्रीजी के बालभोगिया व अन्य सेवकों की उपस्थिति में भट्टी पूजन किया जायेगा.
- इससे पूर्व अन्नकूट की रसोईघर को विभिन्न चित्रसज्जा व मांडने आदि मांड कर सजाया गया है. इस सन्दर्भ में सर्वप्रथम भट्टियों का पूजन कुंकुम, अक्षत आदि से मंत्रोच्चार के बीच किया जायेगा.
- पंड्याजी वहां उपस्थित पूज्य मुखियाजी, बालभोगियाजी व अन्य सेवकों को भी कुंकुम, अक्षत से तिलक करेंगे.
- तदुपरांत सामग्री का निर्माण प्रारंभ किया जायेगा जिसमें सर्वप्रथम मूंग और उड़द की दाल के सूखे वड़ों की सेवा प्रारंभ की जाएगी.
- बड़े उत्सवों के पूर्व उनके जैसे ही श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि अथवा आगम के श्रृंगार भी कहे जाते हैं.
- इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को दीपावली के दिन धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है.
- भोग विशेष : मनोरथ के साज की भावना से श्रीजी को राजभोग व शयनभोग में कट-पुआ, केशरयुक्त सुवाली, पकागुंजा, खुरमा, खस्ता मठडी आदि अरोगाये जाते हैं.
आज के श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में आज लाल रंग की धरती अर्थात आधार वस्त्र के ऊपर सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली पिछवाई आती है, जिसमें चन्द्र, सूर्य, गाय, तथा पुष्पों का ज़रदोशी का काम किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलक साई ज़री की रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं.
- पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- माणक की प्रधानता सहित हीरे, मोती, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर फूलक साई श्वेत ज़री की कुल्हे के ऊपर तीन टीका व तीन ही त्रवल, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मकराकृति हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
- पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- त्रवल व टोडर दोनों धराये जाते हैं.
- आज हालरा धराया जाता हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
- राजभोग में पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. – श्रीमस्तक पर तुर्रा-किलंगी नहीं आते हैं व हीरा की किलंगी धरायी जाती है.
- पिछवाई बड़ी (हटा) कर कांच का बंगला आवे.
- मणिकोठा में पांच कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर की देहरी के भीतर दो कांच की मृदंग में रौशनी की जाती है.
- शयन दर्शन उपरांत अनोसर में कुल्हे बड़ी कर छज्जेदार पाग धरायी जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : आज कहा सम्भ्रम तिहारे
राजभोग : गुर के गूंजा पूवा
आरती : देखो अपने नैनन को सुख
शयन : मानत पर्व दिवाली को शुभ
मान : उठ चल बेग राधिका प्यारी
पोढवे : वे देखो बरत झरोखन दीपक
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जय श्री कृष्ण
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राजभोग दर्शन कीर्तन (राग : सारंग)
गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll
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