व्रज – कार्तिक शुक्ल सप्तमी, गुरुवार 11 नवम्बर 2021
विशेषता : अष्टमी का क्षय होने से गोपाष्टमी आज मानी गयी है. आप सभी को बधाई.
- का पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से मांडा जाता हैं. आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- गेंद, चौगान, दिवाला आदि सभी सोने के आते हैं.
- आज सभी समय यमुना जल की झारीजी भरी जाती हैं.
- दिन में दो समय थाली में आरती की जाती है.
- मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
- साज सेवा में आज पिछवाई श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में कशीदे की श्वेत गायों की आती है.
- गौचारण के भाव से आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- शीतकाल में मान आदि की लीलाएँ होती है परन्तु रासलीला नहीं होती अतः मुकुट नहीं धराया जाता.
- आज से तीन दिन तक आठों समय में गौ-चारण लीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
- गोपाष्टमी के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है. सखड़ी में केशरयुक्त पेठा, मीठी सेव व दहीभात अरोगाये जाते हैं व संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
- प्रभु सम्मुख पान के बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.
- आज गोपाष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तक संध्या-आरती में प्रतिदिन श्रीजी को शाकघर में विशेष रूप से सिद्ध गन्ने के रस की एक डबरिया (छोटा बर्तन) अरोगायी जाती है. – इस अवधि में कुछ बड़े उत्सवों पर इस रस में कस्तूरी भी मिश्रित होती है.
- दशहरा के दिन से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गौमाता आती है जो आज संध्या-आरती दर्शन उपरांत विदा होती है.
- आज से चार दिन की नौबत की बधाई बैठती है.
श्रीजी दर्शन : - साज सेवा में आज श्रीजी में श्याम आधारवस्त्र पर खण्डों में गायों के कशीदा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी बिछावट की जाती है.
- आज वस्त्र श्रृंगार में गौचारण के भाव से प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.
- इस ऋतु में मुकुट-काछनी का यह श्रृंगार अंतिम बार धराया जायेगा.
- इसके तहत वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज लाल रंग का रेशमी सूथन, हरे व लाल छापा की काछनी एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धरायी जाती है.
- लाल दरियाई वस्त्र का रास-पटका (पीताम्बर) धराया जाता है.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो श्रीजी को आज वनमाला का चरणारविन्द तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण मिलवा विशेषकर हीरे, पन्ना, माणक एवं जड़ाव सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हीरा की टोपी पर सोने का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. – श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में माला, दुलड़ा हार आदि धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी की माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ पीले एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट काशी का, गोटी सोने की (कूदती बाघ-बकरी की) रखी जाती है
- आरसी राजभोग में सोने की डांडी की व श्रृंगार में चार झाड़ की दिखाई जाती है.
सायंकालीन सेवा में परिवर्तन : - प्रातः धराये मुकुट, टोपी और दोनों काछनी संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे व तनी धराये जाते हैं. आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.
- आज संध्या-आरती दर्शन में छोटा वैत्र श्रीहस्त में धराया जाता है.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : प्रथम गोचारण को दिन आज
श्रृंगार : प्रथम गो चारण चले री कन्हाई
राजभोग : गोपाल माई चलत देखियत नीके
आरती : लटकत चलत युवती सुखदानी
शयन : धेनु को ध्यान मेरे निश दिनारी
मान : बोलत कान्ह नागर वेन
पोढवे : पोढ़ीये घनश्याम बलैया लेहौ
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कीर्तन : (राग : सारंग)
गोपाल माई कानन चले सवारे l
छीके कांध बाँध दधि ओदन गोधन के रखवारे ll
प्रातसमय गोरंभन सुन के गोपन पूरे श्रृंग l
बजावत पत्र कमलदल लोचन मानो उड़ चले भृंग ll
करतल वेणु लकुटिया लीने मोरपंख शिर सोहे l
नटवर भेष बन्यो नंदनंदन देखत सुरनर मोहे ll
खगमृग तरुपंछी सचुपायो गोपवधू विलखानी l
विछुरत कृष्ण प्रेम की वेदन कछु परमानंद जानी ll
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जय श्री कृष्ण
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गोपाष्टमी भावना :
आज के दिन पांच वर्षीय नन्दकुमार श्री कृष्ण पहली बार गौ पूजन करके गौ-चारण हेतु वन में पधारे थे. अतः आज से ही प्रभु श्रीकृष्ण को गोप (ग्वाल) का दर्ज़ा मिला था. इस भाव से आज का उत्सव गोपाष्टमी कहलाता है. प्रभु ने अष्टमी से गौ चारण प्रारंभ किया था क्योंकि गोपगण गायों की अष्टांग योग से सेवा करते हैं. जैसाकि हम आज श्रीनाथजी की गौ शाला में दर्शन कर पाते है.
पुष्टिमार्ग ही ऐसा मार्ग अथवा संप्रदाय है जिसमें गौ-पालन, गौ-क्रीड़न, गौ-संवर्धन आदि होते हैं और गौ-सेवा प्रभु की सेवा की भांति की जाती है. आज भी श्रीजी की गौशाला में लगभग 3000 से अधिक गौधन का लालन-पालन होता है. व्रज में भी प्रभु श्रीकृष्ण की समस्त जीवन क्रिया गौ-चारण में ही हुई तभी प्रभु को गोपाल कृष्ण भी कहा जाता है. इसके पीछे भाव यह है कि प्रभु गायों के बिना एक क्षण भी नहीं रहते. सर्व प्रथम गाय का दूध अरोग कर ही आप की उर्ध्व भुजा प्रकटी थी. प्रभु स्वरुप गाय ही है.
श्री महाप्रभुजी भी गौ-सेवा के प्रति पूर्णतः समर्पित थे. श्रीजी ने जब गाय मांगी तब आपश्री अपने आभूषण बेच कर प्रभु के लिए गाय लाये. आज भी श्रीजी की गौशाला में लगभग 2,500 से अधिक गौधन का लालन-पालन होता है.
आज वैष्णव विशेष रूप से गौशाला जाकर गायों को थुली, चारा, घांस, लड्डू आदि खिलाते हैं. - श्रीजी की गौशाला आज एक और परम्परा निभाई जाती है.
आज के दिन उत्थापन उपरांत गौशाला में गौक्रीडा के बाद पाडों (भैंसों) की भिड़ंत करायी जाती है जिसमें हजारों की संख्या में नगरवासी गौशाला में एकत्र हो कर पाडों (भैंसों) की भिड़ंत का आनंद लेते है. आज की भिड़ंत के लिए ग्वालबाल कई माह पूर्व से पाडों (भैंसों) को अच्छी खुराक खिला कर तैयार करते है. - आज श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी में नहीं परन्तु अन्य निधि स्वरूपों व वैष्णव मंदिरों में कुंडवारा का मनोरथ होता है. प्रभु गौ-चारण को पधारें तब सभी ग्वाल-बालों के साथ भोग अरोग कर पधारते हैं इस भाव से कुंडवारा का भोग अरोगाया जाता है.
यह है श्रीजी की सेवा परम्परा में गोपाष्टमी का भाव.
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जय श्री कृष्ण.
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