व्रज – कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा, शुक्रवार, 19 नवम्बर 2021
कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव
विशेष :– आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है.
कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा.
- ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं.
- कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं.
- इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है.
- आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव
का दिन है. - आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री
विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री
नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।
श्रीजी का सेवाक्रम :- - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से मांडा
जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. - आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है.
किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं : - मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
- मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण
देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन
दिनों में किरीट धराया जा सकता है. - मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार,
घेरदार वागा, धोती-पटका अथवा पिछोड़ा धराये जा सकते हैं. - मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट
धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं. - मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के
श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है. - चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से
दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. - राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य,
चन्द्र व तारों के ज़रदोशी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई
धरायी जाती है. - गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली,
चाकदार वागा एवं सूथन धराये जाते हैं. - पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है.
- मोजाजी गुलाबी रंग के धराये जाते है.
- ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का
श्रृंगार धराया जाता है. - कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी
फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. - श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- खेल के साज में पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
सायंकालीन सेवा :-
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के
(छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर गोलपाग व रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं. - श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : आज नन्दलाल मुख चंद
राजभोग : गिर पर ठाड़े लसत गोवर्धन
आरती : देखत न देत बैरन भई पलकें
शयन : मोहन मुखारविंद पर मन्मय
मान : चल मुख मौन मनायो मान
पोढवे : रंग महल सुखदाई - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं
शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है. - नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग
आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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कीर्तन (राग : आसावरी)
गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l
चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll
मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l
नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l
झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll
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