व्रज – कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, गुरुवार, 18 नवम्बर 2021
विशेष :– आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी (१८७६) का उत्सव है.
श्रीजी का सेवाक्रम :- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी हल्दी से
मांडा जाता हैं. आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. सभी समय
झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
- आज से गादी, तकिया पर पुनः सफेदी चढ़ जाती है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक, सखडी में बूंदी प्रकार, वारा में
मैनर के बड़े लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का
अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व चालनी आदि
अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज श्रीजी में पीले रंग की खीनख़ाब की लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित
पिछवाई धरायी जाती है. - गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर आज से पुनः सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर अंगीठी व त्रष्टि धरे जाते हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज पीले खीनखाब के रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित चोली,
चाकदार वागा एवं सूथन, धराये जाते हैं. - मोजाजी लाल खीनखाब के धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा के दर्शन करें तो प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का
श्रृंगार धराया जाता है. - कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण माणक एवं सोने के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की माणक की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक का दुलड़ा, सुनहरी
चमक का घेरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. - माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक यह का घेरा वर्षभर में केवल आज के दिन धराया
जाता है. - बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी
फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. - श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लाल मीना व स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
- खेल के साज में पट लाल, गोटी श्याम मीना की रखी जाती है.
- श्रीजी को आरसी आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
सायंकालीन सेवा :-
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के
(छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी गोलपाग सिरपेच टीका एवं एक पंख की
(सादी) मोर चन्द्रिका व मानक का झोरा धराये जाते हैं. आज लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. - श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : ललन पिया रस भरे
राजभोग : वल्लभ नंदन रूप अनूप
आरती : चम्पकली गन गनी राखी हो
शयन : मोहन लाल बने रंग भीने
मान : रतन जतन कर पायो
पोढवे : लागत है अत शीत की - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं
शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है. - नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग
आरोगाया जाता है.
……………….
कीर्तन (राग : सारंग)
श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll
…………….
जय श्री कृष्ण
………………………
https://www.youtube.com/c/DIVYASHANKHNAAD
……………………….