व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी, बुधवार, 01 दिसम्बर 2021
विशेष :- शीतकाल की प्रथम द्वादशी की चौकी
- मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी की) श्रीजी को अरोगायी जाती है.
- इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.
- यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है. श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है.
- इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है.
- उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में उन किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें.
- इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.
- देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है.
- इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है.
- यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी.
- आज की चौकी में श्रीजी को मंगलभोग में तवापूड़ी, घी व बुरा की कटोरी अरोगायी जाती है.
- श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.
- आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं.
आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर बैंगनी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई सजाई जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को बैंगनी रंग की साटन के वस्त्र के बिना किनारी के सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी धरायी जाती है.
- सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज प्रभु को छोटा हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- सभी आभरण हीरा एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
- आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं.
- आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.
- आरसी श्रृंगार में स्वर्ण की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.
संध्याकालिन सेवा :- - संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. अनोसर में श्रीमस्तक पर चीरा रहता हैं एवं आड़ी एवं ठाड़ी लड़ धरायी जाती हैं.लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : विध मधुरानन मानदं
राजभोग : आए जू अरसाने सरसाने
आरती : मिस ही मिस आवे गोकुल की नार
शयन : ऐ सिर सोने के सुतन सोहे पाग
हिमकर सरस सुखद ऋतु आयी
मान : रतन जतन कर पायो
पोढवे : लागत है अत शीत की निकी - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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