व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी, मंगलवार, 30 नवम्बर 2021
आज की एकादशी को उत्पति एकादशी कहा जाता हैं. व्रज-कन्याओं ने प्रभु श्री कृष्ण को अपने पति रूप में पाने के लिए देवी कात्यायनी का व्रत किया था. तत्समय अन्याश्रय ना हो अतः आज के दिन श्री यमुना जी ने रेणु (रज़) से कात्यायनी देवी की प्रतिमा बना कर उनकी प्रथम उत्पत्ति की थी अतः इस एकादशी को उत्पत्ति एकादशी कहा जाता है. कात्यायनी देवी तामसी जीवों को वांछित फल देने वाली आधिदैविक तामसी शक्ति है.
आज उत्पत्ति एकादशी है परन्तु श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है.
- ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है. इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है.
- आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाव का धराया जाता है.
- आज की सेवा श्री ललिता जी की सखी कुंजरी जी की ओर से होती है.
श्रीजी दर्शन :- - साज सेवा में आज सिलमा सितारों के कशीदे के ज़रदोशी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
- चरणचौकी के साथ पडघा, बंटा आदि भी जड़ाऊ स्वर्ण के होते हैं.
- पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है.
- सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
- वस्त्र सेवा में श्रीजी को आज फिरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं.
पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं पीला ज़री का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. - ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण माणक के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
- श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है.
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत एवं गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि धराये जाते है.
- खेल के साज में पट फिरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
संध्याकालिन सेवा : - संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का टीपारा एवं रूमाल बड़ा करके छज्जेदार पाग धराई जाती हैं. लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा :
मंगला : व्रजानंद कंदम
राजभोग : विमल कदम मूल अवलंबित
आरती : अग्र तक तक द्रुम द्रुम
शयन : जान्यो प्रीत को मरम
मान : उठ चल री पिय पहर
पोढवे : रच रुच सेज बनाई - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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बात हिलगही कासों कहिये।
सुनरी सखी बिवस्था या तनकी समझ समझ मन चुप करी रहिये ॥१॥
मरमी बिना मरम को जाने यह उपहास जग जग सहिये।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधरन मिले जबही, तबही सब सुख पहिये ॥२॥
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कीर्तन – (राग : सारंग)
बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ।
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुण निधान जानबुझ एक तान चूक के बजाई ।। १ ।।
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन अति नवीन रूप सहित वही तान सूनाई ।
वल्लभ गिरिधरनलाल रीझ दई अंकमाल
कहत भले भले लाल सुंदर सुखदाई ।।२।।
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