व्रज – पौष शुक्ल षष्ठी, शनिवार, 08 जनवरी 2022
श्रीजी का सेवाक्रम :-
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों से बनी सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
- आज सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है.
- दो समय आरती थाली में की जाती है.
- गद्दल रजाई केसरी अडतू के आते हैं.
- गेंद, चौगान व दीवला सोने के होते हैं.
- बड़ी नौबत की बधाई बैठती है.
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं.
- राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख छह बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.
- मुखियाजी प्रभु को एक कलदार रुपया न्यौछावर कर कीर्तनिया को देते हैं.
- आज श्री नवनीतप्रियाजी में पलना के मनोरथी स्वयं श्रीजी के तिलकायत होते हैं. – सामान्य दिनों में श्री नवनीतप्रियाजी को पलना की सामग्री के रूप में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं परन्तु आज श्री लाड़लेलाल प्रभु को पलना में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.
श्रीजी दर्शन :–
- साज सेवा में आज श्रीजी में केसरी रंग की साटन की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें सिलमा-सितारा के चित्रांकन में पलने में झूलते श्री गोवर्धननाथजी को एक ओर नन्दराय-यशोदा जी खिलौनों से खिला रहें हैं एवं दायीं ओर श्री गोवर्धनलालजी महाराज एवं श्री दामोदरलालजी प्रभु को पलना झुला रहे हैं.
- पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है.
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
- वस्त्र सेवा में आज श्रीजी को पीले (चंपाई) रंग की साटन का, रुपहरी ज़री की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं.
- ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार आभरण सेवा में आज प्रभु को मध्य का घुटनों तक का भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
- श्रीमस्तक पर हीरे के जड़ाव की टोपी के ऊपर तीन तुर्री, बाबरी, अलख (घुंघराले केश की लटें) मध्य में हीरे के जड़ाव की मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
- हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.
- श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
- पीठिका के ऊपर हीरे के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.
- हास, त्रवल सब धराये जाते हैं.
- एक माला कली की व एक कमल माला धरायी जाती है.
- गुलाबी एवं पीले रंग की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
- श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं हीरा-जड़ित वेत्रजी धराये जाते हैं.
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि भी हीरा के धराये जाते है.
- पट पीला, गोटी श्याम मीना की आती है.
- आरसी लाल मखमल वाली दिखाई जाती है.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : मेरे आए भोरे प्यारे वाके सब निस
श्रृंगार : लरकाई में जोबन की छब
राजभोग : देखो अद्भुत अवगत की गति
आरती : महर पूत तेरो बरज्यो न माने
शयन : मोहन माखन चोरी
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है. - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराज का संक्षिप्त परिचय
विशेष – आप श्री गोवर्धनलालजी महाराज के पुत्र थे एवं आप का जन्म विक्रम संवत १९५३ में आज के दिन नाथद्वारा में हुआ था. आप धीर, वीर, गंभीर, विद्यावारिधि, सकल कला निष्णात, अति सुन्दर, उत्तम साहित्यकार, सुबोधिनी जी के विद्वान अभ्यासु, निपुण वक्ता, अद्भुत कथाकार एवं विनोदी स्वाभाव के थे.
आप खेलों के शौक़ीन थे एवं विशेषकर भारत के प्रसिद्ध खेल क्रिकेट के आप महारथी थे.
प्रभु सेवा में भी आपकी रूचि बहुत थी. आपने सदैव श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी प्रभु को विविध प्रकार की भोग-राग-श्रृंगार की सेवा कर रिझाया.
प्रभु सुखार्थ कई सेवा परिवर्तनों का श्रेय आपको जाता है.
मार्गशीर्ष मास में होने वाले पाछली रात का श्रृंगार, दूज के चंदा को श्रृंगार, ऊष्णकाल के मोती के जड़ाऊ श्रृंगार प्रभु को धरने आपने ही आरम्भ किये थे.
आपके ही आग्रह पर शीत ऋतु में होने वाली घटाओं को 8 से बढ़ाकर 12 किया गया.
बसंत व डोल के प्रतिनिधि के श्रृंगार आपके अनुग्रह पर आरम्भ हुए थे.
ठाकुरजी में गणगौर महोत्सव की शुरुआत भी आपने ही की थी.
आप श्री गुसांईजी की चौदहवीं पीढ़ी में थे. आपकी दयालुता, व्यवहार कुशलता, अपूर्व त्याग, न्याय-रक्षता आदि सर्वविदित हैं. अपने जीवन के उत्तरोतर काल में धर्म हेतु आपने श्रीजी की अतुल्य संपत्ति का त्याग कर उदयपुर (तत्कालीन मेवाड़) में निवास किया.
विक्रम संवत २००२ में आपने नित्यलीला में प्रवेश किया.
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