व्रज – फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी, रविवार, 20 फरवरी 2021
विशेष :– फाल्गुन मास में इन दिनों होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.
इसी भाव के श्रीजी के आज के श्रृंगार है. चोली की गुलाल में गुलाब का इत्र मिश्रित होता है. श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि व अंगीठी धरी जाती हैं.
वस्त्र : आज के वस्त्रों में लाल एवं हरे रंगों का सुन्दर संयोजन होता है. आज श्रीजी को हरे रंग का सूथन एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाल की लाल चोली धरायी जाती है. रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित लाल कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व दूसरा बगल में होता है.
लाल रंग के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
श्रृंगार आभरण : आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला आदि सभी आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की हरी खिड़की वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रंग का रेशम का जमाव (नागफणी) का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराये जाते व कंठी धरायी जाती है.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर आदि भी स्वर्ण के धराये जाते है.
खेल के साज में पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.
आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु गुलाल की चोली नहीं खोली जाती है.
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : आनंदराय खेले फाग
राजभोग : अष्टपदी, रिझवत रसिक किशोर को
आरती : गोरी गोरी गुजरिया भोरी सी
शयन : कमल नयन को कौतिक
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
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जय श्री कृष्ण
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