व्रज – फाल्गुन कृष्ण अष्टमी, गुरुवार, 24 फरवरी 2022
श्रीजी दर्शन :
साज : आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर राजभोग में गुलाल से चवरी मांडी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. दो में से एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है. सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं.
वस्त्र : श्रीजी को आज केसरी रंग का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
श्रृंगार आभरण : प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) फागुण का श्रृंगार धराया जाता है. कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मीना के फागुन के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर फ़ीरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में दो जोड़ी मीना मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.
आज अक्काजी वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, लाल एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
खेल के साज में पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती हैं.
आरसी उत्सववत दिखाई जाती है.
संध्याकालिन सेवा : संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं. दुमाला रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : धन धन नन्द जसुमति
राजभोग : अष्टपदी, श्री गोकुल राज कुमार लाल रंग
नन्द महर को कुंवर कन्हैया (मरवट बनावे तब)
आरती : श्री गोकुल राज कुंवर
शयन : मिल जू डंडा रस खेल ही
पोढवे : चले हो भांवते रस एन
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है. - श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
- श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
- राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
- सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग थाल में सजा कर अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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