व्रज – फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, सोमवार, 28 फरवरी 2022
विशेष – माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं.
कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.
इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से अबीर की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.
राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है. अबीर की चोली पर कोई रंग (गुलाल आदि) नहीं लगाए जाते.
कल मंगलवार, 01 मार्च 2022 को शिवरात्रि है. भगवान शंकर प्रथम वैष्णव हैं और श्रीजी के प्रिय भक्त हैं अतः प्रभु को श्रीमस्तक पर मुकुट का श्रृंगार व अंगूरी रंग की छांटनी की गोल-काछनी का अद्भुत श्रृंगार धराया जायेगा.
श्रीजी दर्शन
साज : आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को बिना किनारी का पतंगी (रानी) रंग का सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर अबीर की सफ़ेद चोली धरायी जाती है. रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित केसरी कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. केवल चोली पर रंगों से खेल नहीं किया जाता.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की बाहर की खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मच्छी घाट को दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते, कंठी व पदक धराये जाते हैं.
सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.
आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु अबीर की चोली नहीं खेले और रहे.
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
- श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
मंगला : बंदो मुनसइ नन्द को
राजभोग : अष्टपदी, ग्वालन सोंधे अंगिया
आरती : गोरी गोरी गुजरिया भोरी सी
शयन : लाल तेरे सुख की सोंज सब लेहो
पोढवे : चले हो भावते रस एन
कीर्तनों का प्रभु के सन्मुख गायन किया जाता है.
श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है.
नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है.
श्रीजी के कपोल पर गुलाल अबीर से सुन्दर चित्रांकन किया जाता है.
राजभोग के दर्शनों में भारी खेल होता है और दर्शनार्थी वैष्णवों पर पोटली से गुलाल अबीर उडाये जाते है.
सायंकालिन भोग दर्शनों के भोग में खेल के साज के भोग अरोगाये जाते है जिसमे सूखे मेवा, फलों तथा दूधघर की सामग्रियों की अधिकता रहती है.
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जय श्री कृष्ण
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