व्रज – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०७९, शनिवार, 02 अप्रैल 2022
आज भारतीय नव-संवत्सर (नववर्ष) है
- ऐसा कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिवस श्री ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की उत्पत्ति की थी। अतः आज इस दिन को नव-संवत्सर के रूप में मनाया जाता है, आज के दिन ही त्रेता युग युग भी प्रारंभ हुआ ऐसा माना जाता है। गुडी पडवा भी आज ही मनाया जाता है
- त्रेतायुग में आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था
- आज ही के दिन २०७८ वर्ष पहिले उज्जैनी के सम्राट महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत का शुभारम्भ हुआ था
- क्या आप जानते है विक्रम संवत से पूर्व 6676 ईसवी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है
- सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलियुग संवत का, कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी
- विक्रम संवत को नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है। इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम है। इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरम्भ हुआ
- शक्ति उपासना का पर्व चैत्री नवरात्रि आज से प्रारंभ हो जाता है
- आज के दिन मीठे नीम की कोंपलें और मिश्री का सेवन करना चाहिए
- पुष्टिमार्ग में आज की सेवा श्री स्वामिनीजी की ओर से होती है अतः प्रभु को आज छापा के खुलेबंद के वस्त्र, श्रीमस्तक पर छापा की कुल्हे एवं मोरपंख की जोड़ धराये जाते हैं
- देवीपूजन के जो पद आश्विन मास की नवरात्रि में गाये जाते हैं वही पद इन नौ दिनों में भी गाये जाते हैं
- श्रीजी में आज से सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे
- विगत कल तक मंगला में श्रीजी के श्रीअंग पर दत्तु और पीठिका पर दग्गल धरायी जा रही थी. आज से प्रभु के श्रीअंग पर उपरना धराया जायेगा, दग्गल पूर्ण रूप से विदा हो जाएगी, दत्तु केवल पीठिका पर धरायी जाएगी एवं श्री महाप्रभुजी के उत्सव के अगले दिन (वैशाख कृष्ण द्वादशी) से पूर्ण रूप से बड़ी कर (हटा) दी जाएगी
- आज से श्रीजी में ज़री के वस्त्र नहीं धराये जायेंगे, मलमल पर छापा के वस्त्र आज से प्रभु को धराने प्रारंभ हो जायेंगे
- कुछ वैष्णव मंदिरों में आज नववर्ष के अवसर पर मीठे नीम की कोमल कोंपलों के रस में मिश्री के टूक एवं इलायची पधराकर प्रभु के सम्मुख धरी जाती है यद्यपि ऐसा कोई सेवाक्रम श्रीजी में नहीं किया जाता. श्रीजी के पातल-घर में प्रशादी मिश्री की कणी और नीम की कोंपलें बाहर से लाकर रखी जाती है जिन्हें आज सेवकगण एवं वैष्णव लेते हैं
- आज से प्रभु की शैयाजी शैया मन्दिर के स्थान पर मणिकोठा में साजी जाती है और इस कारण आज से शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते
- आज का सेवाक्रम
- उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को पूजन कर हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं. राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे. सभी जगह भाँतवार बंटा चढ़े
- आज दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. सभी समय आरती थाल में की जाती है. आज से प्रतिदिन आरती में एक खण्ड (बाती) कम आता है
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है
- श्रृंगार समय प्रभु के मुख्य पंड्याजी श्रीजी के सम्मुख नववर्ष का पंचांग वाचन करते हैं एवं न्यौछावर की जाती है
- गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है
- राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं
- आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है
- मंगला दर्शन
- विगत कल तक मंगला में श्रीजी के श्रीअंग पर दत्तु और पीठिका पर दग्गल धरायी जा रही थी.
- आज से प्रभु के श्रीअंग पर उपरना धराया जायेगा, दग्गल पूर्ण रूप से विदा हो जाएगी. दत्तु केवल पीठिका पर धरायी जाएगी एवं श्री महाप्रभुजी के उत्सव के अगले दिन (वैशाख कृष्ण द्वादशी) से पूर्ण रूप से बड़ी कर (हटा) दी जाएगी. आज पीठिका पर लाल छापा का सेला धराया जाएगा
श्रीजी दर्शन:
- साज:
- आज श्रीजी में केसरी मलमल पर लाल छापा की हरी किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है
- सिंहासन, चरणचौकी, पडघा, झारीजी आदि स्वर्ण जड़ाव के धरे जाते हैं, प्रभु के सम्मुख चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो प्रतिदिन राजभोग पश्चात अनोसर में धरे जाते हैं
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र: श्रीजी को आज पीले छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, लाल छापा की चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं, ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मिलवा हीरा की प्रधानता, मोती, माणक, पन्ना एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पान, टीका, दोहरा त्रवल, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं, बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है
- श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- श्रीकंठ में पदक, हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली की आती है
- आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं
- राजभोग दर्शन:
- आज राजभोग में श्रीजी में नियम की छज्जे वाली चैत्री गुलाब की दोहरी मंडली आती है. श्रृंगार समय धरायी पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में श्रीजी विराजित होते हैं. इस मंडली में गेंद, चौगान दोहरे धराये जाते हैं. मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं
- राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली बड़ीकर (हटा) दी जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज दिनभर देवियों के पद होते है
- मंगला: जान्यो जान्यो री में सयान प्राणेश्वर
- अभ्यंग: अभ्यंग के 6 पद गाये जाते है
- श्रृंगार सन्मुख: नवनिकुंज देवी जय राधिका, चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज
- राजभोग: बलि बलि आज की बानक लाल
- आरती: आई है हमारे कोऊ संग पूजन चलो कदम्ब
- शयन: कुल्हे के भाव के, ऐ मोपे आज की बानक लाल कही
- मान: छांड दे माननी श्याम संग रुठवो
- पोढवे: राय गिरधरन संग राधिका रानी
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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