व्रज – चैत्र शुक्ल एकादशी, मंगलवार, 12 अप्रैल 2022
श्री वल्लभाचार्यजी के उत्सव की बधाई बैठे
- आज श्री वल्लभाचार्य जी के उत्सव के पंद्रह दिन पहले उत्सव की बधाई बैठती है, और अगले पंद्रह दिवस श्री महाप्रभुजी की एवं जन्माष्टमी की बधाईयाँ गायी जातीं हैं
- बधाई बैठे उसी दिन से प्रभु को बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं, जैसे श्रृंगार हो उस भाव के बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं
- आज से आगामी पंद्रह दिन तक गहरे हरे, श्याम, बादली, नीले आदि रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं एवं इस अवधि में अशुभ में गये सेवक की दंडवत (सेवा में पुनः प्रवेश) भी वर्जित होती है
- प्राकट्योत्सवों के पूर्व बधाई बैठने भावना कुछ यूं है कि भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ उसके पूर्व ब्रह्माजी, इन्द्र, शिवजी आदि सभी देवों द्वारा देवकीजी के गर्भ में विराजित प्रभु की स्तुति की गयी थी तब प्रभु का प्राकट्य हुआ, इस प्रकार पहले बधाई बैठती है, बधाईयाँ गायी जाती हैं और प्रभु की वंदना करने, गुणगान करने से प्रभु अवतरित होते हैं
- पंद्रह दिवस की बधाई बैठने का एक प्रमुख कारण यह है कि श्री महाप्रभुजी के लौकिक पिता श्री लक्ष्मणभट्टजी को उनके द्वारा किये सौ सोमयज्ञों के फलस्वरुप प्रभु ने रामनवमी के दिन स्वप्न में माला-बीड़ा देकर आज्ञा की थी कि मैं तुम्हारे घर प्रकट होने वाला हू, इस भाव से श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई पंद्रह दिवस पूर्व बैठती है
- सेवाक्रम :
- उत्सव की बधाई बैठने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता है एवं आशापाल के पत्तों से बनी वंदनमाल सूत की डोरी से बाँधी जाती है
- दो समय आरती थाली में की जाती है
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है
श्रीजी दर्शन:
- साज: आज श्रीजी में श्वेत रंग की प्रभु को पलना झुलाते पूज्य गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं, सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं
- ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण मोती के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल जड़ाव की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते है
- श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ चैत्री गुलाब के पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- पट लाल, गोटी चांदी की आती है
- आरसी उत्सववत दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: ब्रज भयो महर के पूत
- राजभोग: धन्य जशोदा भाग्य तिहारो
- आरती: धर्म ही ते पायो यह धन
- शयन: जन्मत ही आनंद भयो
- मान: मान नी मान मेरो
- पोढवे: तुम पोढो हों सेज बनाऊं
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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