व्रज – चैत्र शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार, 16 अप्रैल 2022
आज रासोत्सव की भावना
- आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की रास की छः मास की रात्रि आज पूर्ण होने से आज रासोत्सव मनाया जाता है
- कुछ पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में आज शरद उत्सव मनाया जाता है और शरद पूर्णिमा को अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अरोगायी जाती है यद्यपि श्रीजी में ऐसा सेवाक्रम नहीं होता है
- श्रीजी में आज रास की चार सखी के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है, नियम का रास के भाव का मुकुट और गुलाबी काछनी का श्रृंगार धराया जाता है
- प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है
- अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता
- जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है
- काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है
- जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं, ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं
- जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है
श्रीजी दर्शन:
- साज: आज श्रीजी में रास करती चार गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं श्याम मलमल की चोली धरायी जाती हैं
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
- ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण हीरा के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है
- कर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- बायीं ओर हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के हीराजड़ित वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व सोने के) धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है
- आरसी उत्सव वत दिखाई जाती है
- संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण, मुकुट व टोपी बड़े किये जाते हैं व श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग धरायी जाती है
- श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: मोद विनोद आज घर नन्द
- राजभोग: ऐसी बंसी बाजी, नटवर नट निर्तत है
- आरती: बन्यो मोर मुकुट नटवर वपु
- शयन: निर्तत रास रंग रसिक रास में
- मान: माननी मनायो न मानत
- पोढवे: पोढ़े हरि राधिका के गेह
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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