व्रज – वैशाख कृष्ण तृतीया, मंगलवार, 19 अप्रैल 2022
आज का श्रृंगार ऐच्छिक है
- ऐच्छिक श्रृंगार उन दिनों में धराया जाता है, जिन दिनों के लिए श्रीजी की सेवा प्रणालिका में कोई श्रृंगार निर्धारित नहीं होता है
- इसकी प्रक्रिया के तहत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की प्रेरणा सर्वोपरि है
- जिसके तहत मौसम के अनुसार तत सुख की भावना से पूज्य तिलकायत श्री की आज्ञा के अनुसार मुखियाजी के द्वारा श्रृंगार धराया जाता है
श्रीजी दर्शन:
- साज: श्रीजी में आज लाल पीले लहरियाँ की रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- आज प्रभु को लाल पीले लहरियाँ का सूथन, चोली एवं चाक वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं
- ठाड़े वस्त्र फिरोज़ी रंग के धराये जाते हैं
- श्रृंगार:
- आज श्रीजी को छोटा (छेडान का) का श्रृंगार धराया जाता है
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण फ़िरोज़ा के धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर फेंटा के ऊपर बीच की चन्द्रिका क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- श्रीकर्ण में लोलकबिंदी वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
- श्रीकंठ में एक कमल माला धरावे
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में कमलछड़ी, फिरोजा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ धराई जाती है
- पट लाल व गोटी बाघ बकरी की आती है
- आरसी नित्य की चांदी वाली दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: धनि धनि माधो मास एकादशी
- राजभोग: घर घर ग्वाल देत है हेरी, कांकर वार तैलंग तिलक
- आरती: रावरें के कहे गोप आप ब्रज
- शयन: भाग्य सबन ते न्यारो रानी, भक्ति सुधा बरखत हि प्रगटे
- मान: तेरे री मनायवे ते निको
- पोढवे: पोढ़ीये पिय कुंवर कन्हाई
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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