नमामि विठ्ठलेश्वरं सदात्युदार मानसं,
स्वभक्त रक्षणंक्षमं व्रजेश भक्तिभावदं.
स्तुति
सर्वात्माना प्रपन्नानां गोपीनां पोषयन् मनः l
तं वंदे विट्ठलाधीशं गौरश्यामं प्रियान्वितम् ll
भावार्थ : पूर्ण भावपूर्वक शरण में आये गोपीजनों के मन का पोषण करने वाले श्रीस्वामिनीजी सहित विराजित गौरश्याम स्वरुप श्री विट्ठलनाथजी प्रभु, मैं आपका वंदन करता हूँ
इतिहास : चरणाट में महाप्रभु जी के यहाँ जिस दिन उनके द्वितीय पुत्र श्री गुसांईजी का प्राकट्य हुआ उसी दिन एक ब्राह्मण आये जिन्होंने श्री महाप्रभुजी को प्रभु श्री विट्ठलनाथजी का यह स्वरुप दिया.
श्री महाप्रभुजी ने प्रसन्न हो कहा : “आज प्रभु एवं पुत्र दोनों पधारे हैं इस कारण इसका नाम हम श्री विट्ठलनाथ रखेंगे. विट्ठल का अर्थ अज्ञानियों को ज्ञानरुपी प्रकाश बताने वाला होता है अतः यह बालक पुष्टिमार्ग का पूर्ण विकास करेगा.”
प्रभु के इस स्वरुप की सेवा श्री महाप्रभुजी के साथ श्री गुसांईजी करते थे एवं कालांतर में श्री गुसांईजी ने यह स्वरुप अपने द्वितीय पुत्र श्री गोविंदरायजी को सेवा हेतु प्रदान किया.
श्री गोविंदरायजी ने प्रभु के स्वरुप को गोकुल के यशोदाघाट स्थित मंदिर में पधराकर वर्षों सेवा की. आपके पुत्र श्री कल्याणरायजी एवं उनके पुत्र श्री हरिरायजी ने भी यहीं प्रभु की खूब सेवा की. यह स्थान आज श्री हरिरायजी की बैठक के रूप में जाना जाता है.
श्री हरिरायजी भविष्यदृष्टा थे और उन्हें आभास हो गया कि श्रीजी भविष्य में व्रज छोड़कर मेवाड़ पधारेंगे अतः आप पहले ही प्रभु के स्वरुप सहित मेवाड़ पधारे एवं नाथद्वारा के निकट खमनोर गाँव में विराजित हो सेवा करने लगे. जब श्रीजी मेवाड़ पधारे तब अपने श्रीजी मंदिर के निकट ही श्री विट्ठलनाथजी का भव्य मंदिर बनवाकर आज के दिन प्रभु को वहां पधराया. तब से अब तक प्रभु श्री विट्ठलनाथजी अपने स्वामिनीजी सहित वहीँ विराजित हो भक्तों पर आनंद की वर्षा कर रहे हैं.
वर्तमान में द्वितीय पीठ आचार्य गोस्वामी श्री कल्याणरायजी अपने पुत्रों श्री हरिरायजी एवं श्री वागीशजी और परिवार सहित प्रभु की सेवा का लाभ ले रहे हैं.
स्वरुप भावना : श्री ठाकुरजी का स्वरुप श्याम है परन्तु श्री स्वामिनीजी का स्वरुप गौरवर्ण है. श्री स्वामिनीजी के प्रेमविवश हो प्रभु भी आधे गौरवर्ण बन गए अतः श्री मस्तक से कमर तक श्याम एवं कमर से चरणारविन्द तक गौरवर्ण हैं.
दोनों श्रीहस्त कमर पर टिके हैं, बायें श्रीहस्त में शंख एवं दायें श्रीहस्त में कमल है.
श्रीमस्तक किरीट मुकुट से सुसज्जित है. दोनों चरण सीधे हैं, एक चरण में नुपुर आभूषण है जबकि अन्य चरण में आभूषण नहीं. साथ में श्री यमुनाजी विराजित हैं जो कि ठाकुरजी के चौथे स्वामिनीजी हैं. उनके दोनों श्रीहस्त में कमल हैं.
देख्यो अद्भुत रूप सखीरी सुर सुता के साथ l
बिबस भये देखि हरि, सुन्दर कटि पर रहि गए दोऊ हाथ ll 1 ll
तातें गौर चित्र श्यामल तन, उपमा कहै तन आवे गाथ l
‘द्वारकेश’ प्रभु यह बिधि देखि, कर लियो जनम सनाथ ll 2 ll
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