व्रज – वैशाख कृष्ण एकादशी, मंगलवार, 26 अप्रैल 2022
आगम का आज नियम का श्रृंगार है
- आज प्रभु श्रीनाथजी के मुखारविंद के प्राकट्य का दिवस भी है
- सेवाक्रम:
- आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज को हल्दी से मांडा जाता हैं एवं आशापाल के पत्तों की सूत की डोरी से बनी वंदनमाल बाँधी जाती हैं
- आज प्रत्येक द्वार के ऊपर रंगोली भी मांडी जाती है
- हल्दी को गला कर द्वार के ऊपर लीपी जाती है एवं सूखने के पश्चात उसके ऊपर गुलाल, अबीर एवं कुंकुम आदि से कलात्मक रूप से कमल, पुष्प-लता, स्वास्तिक, चरण-चिन्ह आदि का चित्रांकन किया जाता है और अक्षत छांटते हैं
- इसे बड़ी देहरी मांडना कहते हैं
- आज सभी समय में झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है
- दो समय आरती थाली में की जाती है
- चरणचौकी, पड़घा, कुंजा, बंटा आदि सर्व साज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं, तकिया आदि भी जड़ाऊ आते हैं
- कमल के कामवाली पिछवाई धरायी जाती है
- गेंद, चौगन, दीवला आदि सभी सोने के आते हैं
- टेरा (पर्दा) केसरी जन्माष्टमी वाले आते हैं
- मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है
- आज मंगला से सायं तक ठोड़ के वारा में जलेबी टूक के टोकरा अरोगाये जाते हैं
- अभ्यंग के मध्य कीर्तन के छह पद नियम के गाये जाते हैं
- आज के दिन श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी को भी अभ्यंग कराया जाता है
- आज श्रीजी को नियम के केसरी (अमरसी) मलमल के खुलेबन्ध के चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं
- वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है. हांस, हमेल, कठुला, त्रबल आदि धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है
- श्याम वस्त्र के ऊपर मोतियों की सज्जा वाला सुन्दर चौखटा प्रभु की पीठिका पर धराया जाता है
- श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा का अरोगाये जाते हैं
- राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात एवं वड़ी-भात) व घोला हुआ सतुवा अरोगाये जाते हैं
- राजभोग समय उत्सव भोग रखे जाते हैं जिनमें प्रभु को केशरयुक्त जलेबी टूक के टोकरा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई पूड़ी), बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं
- इसी प्रकार श्रीजी के निज मंदिर में विराजित श्री महाप्रभुजी की गादी को भी एक थाल में यही सब सामग्रियां भोग अरोगायी जाती हैं
- राजभोग सरे उपरान्त श्रीजी को उस्ताजी की बड़ी आरसी दिखायी जाती हैं फिर राजभोग दर्शन खुलते है और श्रीजी को तिलक, अक्षत किये जाते है, बीड़ा पधराये जाते हैं और मुठिया वार के चून की आरती की जाती है
- इस उपरान्त श्री महाप्रभुजी के पादुकाजी को भी मुठिया वार के चून की आरती की जाती है
- आज श्रीजी को नियम के केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) चाकदार वागा व श्वेत ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं
- वनमाला का दो जोड़ी का श्रृंगार धराया जाता है
- हांस, हमेल, कंठला, त्रबल आदि धराये जाते हैं
श्रीजी दर्शन:
- साज: आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है
- साज सब जडाऊ आता है
- गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है
- एक पडघा पर बंटाजी में बीड़ा व दुसरे पर झारीजी पधराई जाती है, सम्मुख में धरती पर त्रष्टि धरी जाती हैं
- वस्त्र:
- आज श्रीजी को केसरी मलमल के खुले बन्ध (तनी बाँध के धरावे) का चाकदार वागा सूथन, पटका चोली फूल वाले किनारी के धराये जाते हैं
- सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं
- ठाड़े वस्त्र श्वेत मलमल के धराये जाते हैं.
- श्रृंगार:
- आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
- कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, कड़े, मुद्रिकाएं आदि सभी आभरण माणक की प्रधानता एवं जड़ाव स्वर्ण के धराये जाते हैं. नीचे पदक, ऊपर माला, दुलड़ा व हार उत्सववत धराये जाते हैं
- श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की मोर-चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं
- बायीं ओर उत्सव की मोती की चोटी (शिखा) भी धरायी जाती है
- श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं
- बायीं ओर उत्सव की हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है
- श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व नील-कमल की माला धरायी जाती है
- आज श्रीजी को बघनखा धराया जाता हैं
- उत्सव का मोती का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है
- श्रीजी को फूलघर की सेवा में आज गूंजा माला के साथ श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी फूल पत्तियों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं
- श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं
- प्रभु के श्री चरणों में पैजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ हीरा मोती की धराई जाती है
- पट उत्सव का गोटी जड़ाऊ की आती है
- आरसी जड़ाऊ की दिखाई जाती है
श्रीजी की राग सेवा के तहत आज
- मंगला: आज बड़ो दरबार देख्यो
- अभ्यंग: 6 पद नियम के होवे
- राजभोग: सो दिन नीको आज बधाई
- आरती: यह धन धर्म ही ते पायो
- शयन: प्रगट व्हे मारग रीत दिखाई
- पोढवे: सुभग सेज पोढ़े श्री वल्लभ
- श्रीजी सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि- मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है
- नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग आरोगाया जाता है
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जय श्री कृष्ण
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